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________________ ६] :: प्राग्वाट - इतिहास :: [ द्वितीय गूढ़मण्डप का द्वार, उसकी बाहर की दोनों भित्तियाँ, दोनों ओर की भित्तियों में बने हुये दोनों चालय, नव चौकियाँ के बारह स्तंभ, नव मण्डपों का प्रत्येक पत्थर, पट्टी, स्तंभ, देहली - मस्तिका, रिक्तभाग (गाला), कोण, छत, शिखर, चाप, इधर-उधर, ऊपर-नीचे कहीं से भी बिना उत्तम प्रकार की कलाकृति के कोई भी अल्पतम अंग नहीं बना है। ऐसा तिल भर भी स्थान नहीं है, जहाँ शिल्पकार की कुशलटांकी का जादू नहीं भरा हो। इनको देख कर ही तृप्ति हो सकती है, पढ़कर तो दर्शन करने के लिये श्रातुरता और व्याकुलता बढ़ेगी । गूढ़मण्डप का द्वार और नवचौकिया १- गूढ़मण्डप के द्वार के बाहिर नवचौकिया में दोनों ओर की भित्ति में आये हुये दोनों स्तंभों में पांच २ खण्डों में अभिनय करती हुई नर्तकियों के दृश्य हैं । २–गूढ़मण्डप के द्वार के दाहिनी ओर के स्तंभ के और दाहिनी ओर के आालय के बीच के रिक्तभाग (गाला) में सात खण्ड करके कुछ दृश्य अंकित किये गये हैं। ऊपर के प्रथम खण्ड में एक श्राविका हाथ जोड़ कर खड़ी है । उसके पास ही में एक श्रावक भी खड़ा है। दूसरे खण्ड में पुष्पमाला लिये हुए दो श्रावक और एक अन्य श्रावक हाथ जोड़ कर खड़ा है । तीसरे खण्ड में गुरु महाराज दो शिष्यों को क्रिया कराते हुये उनके मस्तिष्क पर वासक्षेप डाल रहे हैं। गुरु महाराज उच्च आसन पर बैठे हैं और उनके सामने छोटे २ आसनों पर उनके शिष्य बैठे हैं । बीच में स्थापनाचार्य एक पट्टे पर प्रतिष्ठित हैं । नीचे के चारों खण्डों में क्रमशः तीन साधु, तीन साध्वियाँ, तीन श्रावक और तीन श्राविकायें खड़ी हैं । ३- इसी प्रकार द्वार के बाहे स्तंभ और बाहे पक्ष के आलय के बीच के रिक्तभाग में भी ऐसे ही दृश्य अंकित हैं । प्रथम सर्वोच्च भाग में एक श्रावक हाथ जोड़ कर चैत्यवंदन कर रहा है और पास में एक श्राविका हाथ जोड़ कर खड़ी है और इसके पास में एक अन्य श्राविका और खड़ी है। दूसरे खण्ड में श्रावक अपने हाथों में पुष्पमालायें लिये हुये हैं। तीसरे में गुरु महाराज उपदेश कर रहे हैं। इसके नीचे के चारों खण्डों में क्रमशः तीन साधु, तीन साध्वियाँ, तीन श्रावक और तीन श्रकिकायें खड़ी हैं। ४ - नवचौकिया तीन खण्ड में विभाजित है । प्रत्येक खण्ड में तीन चौकी हैं। प्रथम खण्ड गूढ़मण्डप के द्वार से लगा है । द्वितीय खण्ड मध्यवर्त्ती और तृतीय खण्ड रंगमण्डप से लगा हुआ है । नवचौकिया के नव मडरूपों के कलादृश्यों का वर्णन गूढ़मण्डप के द्वार से लगे हुये प्रथम खण्ड की मध्यवर्त्ती चौकी के मण्डप से प्रारम्भ किया गया है, जो उत्तर से पूर्व, फिर दक्षिण और फिर पश्चिम दिशाओं के मण्डपों का परिक्रमण - विधि से परिचय देता हुआ मध्यवर्त्ती खण्ड की मध्य चौकी के मण्डप का अन्त में परिचय देता है । १. प्रथम खण्ड का मध्यवर्त्ती मण्डप – यह मण्डप पाँच ऐकेन्द्रिक वृत्तों से बना है । प्रत्येक वृत्त समान आकार के काचला ( Semi round parts ) अर्थात् अर्ध गोल खण्डों से गर्भित है । केन्द्रस्थ गोल खण्ड पूर्ण है, नवचौकिया के मण्डपों के कला- दृश्यों का वर्णन संख्या (१) एक से प्रारम्भ किया गया है। वर्णन का परिक्रमण-ढंग इंस संख्या कोष्ठक के अनुसार है । ८ १ २ ७ ε ३ ६ ५ ४
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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