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________________ :: प्राग्वाट-इतिहास: ४२. श्री राणकपुरतीर्थ धरणविहार का पश्चिमा- | ..भिमुख त्रिमंजिला सिंहद्वार । पृ० २६७। ४३. श्री राणकपुरतीर्थ धरणविहार के पश्चिम मेघ नादमण्डप, रंगमएडप और मलनायक-देवकुलिका के स्तभों की, तोरणों की मनोहर शिल्पकलाकृति । प० २६८ ५४. श्री राणकपुरतीर्थ धरणविहार के कलामयी स्तंभों का एक मनोहारी दृश्य । पृ० २६६ १५. नलिनीगुल्मविमान श्री त्रैलोक्यदीपक धरण विहार नामक श्री राणकपुरतीर्थ श्री आदिनाथ चतुर्मुख-जिनप्रासाद का रेखाचित्र | पृ० २७० ५६. नलिनीगुल्म विमान श्री त्रैलोक्यदीपक धरण विहारनामक श्री आदिनाथ-चतुर्मुख-जिनप्रासाद १४४४ सुन्दर स्तंभों से बना है और अपनी इसी विशेषता के लिये वह शिल्पक्षेत्र में अद्वितीय है। उसके प्रथम खण्ड की समानान्तर स्तम्भमालाओं का देखाव । प० २७१ ५७. श्री राणकपुरतीर्थ धरणविहार की दक्षिण पक्ष पर विनिर्मित देवकुलिकाओं में श्री आदिनाथ देवकुलिका के बाहर भीत्ति में उक्तीणित श्री .. सहसफणा-पार्श्वनाथ । पृ० २७२ १८. श्री राणकपुरतीर्थ धरणविहार की एक देव कुलिका के छत का शिल्पकाम । पृ० २७२ १६. श्री राणकपुरतीर्थ धरणविहार का उन्नत एवं कलामयी स्तंभवाला मेघनादमण्डप । प०२७२ ५०. श्री राणकपुरतीर्थ धरणविहार के पश्चिम मेघ नादमण्डप का द्वादश देवियोंवाला अनंत कलामयी मनोहर मण्डप । पृ० २७३ ५१. सं० सहसा द्वारा विनिर्मित श्री चतुर्मख-आदि.. नाथ शिखरबद्ध-जिनालय,अचलगढ़ । पृ० २७७ ५२. अचलगढ : उन्नत पर्वतशिखर पर सं. सहसा द्वारा विनिर्मित चतुर्मुखादिनाथ-जिनालय पृ० २७८ ५३. अचलगढ : अर्बुदाचल की उन्नत पर्वतमाला एवं मनोहारिणी वृक्षसुषुमा के मध्य सं० सहसा द्वारा विनिर्मित श्री चतुर्मुख-आदिनाथ-जिन प्रासाद का रम्य दर्शन । प० २७८ ५४. अचलगढ : श्री चतुर्मुख-आदिनाथ-जिनप्रासाद में सं० सहसा द्वारा १२० मण (प्राचीन तोल से) तोल की प्रतिष्ठित सर्वाङ्गसुन्दर एवं विशाल मूलनायक-आदिनाथ-धातुप्रतिमा । पृ. २७६ ५५. अचलगढ : श्री चतुर्मुख-आदिनाथ-जिनप्रासाद के प्रतिष्ठोत्सव के शुभावसर पर ही प्रतिष्ठित तीन वीरों की अश्वारोही धातुप्रतिमायें । पृ० २७६ ५६. वसंतगढ : वसंतगढ आज उजड़ ग्राम बन गया है। प्राचीन खण्डहर एवं भग्नावशेष अब मात्र वहां दर्शनीय रह गये हैं। वहां से लाई हुई दो अति सुन्दर धातुप्रतिमायें, जो अभी पींडवाड़ा के श्री महावीर-जिनालय में विराज मान हैं । पृ० २८२ ५७. सिरोही: पर्वत की तलहटी में सं० सीपा द्वारा विनिर्मित पश्चिमाभिमुख गगनचुम्बी श्री प्रादि नाथ-चतुर्मुख-बावन जिनप्रसाद । ५० २८६ ५८. सिरोही : पर्वत की तलहटी में सं० सीपा द्वारा विनिर्मित पश्चिमाभिमुख गगनचुम्बी श्री आदिनाथ-चतुर्मुख-बावन जिनप्रासाद का नगर के मध्य एवं समीपवर्ती भूभाग के साथ मनोहर दृश्य । पृ० २८६ 18 अर्बदगिरिस्थ पित्तलहरवसहि (भीमवसहि): जैनबंधयों के अदभुत प्रभप्रेम को प्रकट सिद्ध करनेवाली भगवान् आदिनाथ की मण १०८ (प्राचीन तोल) की धातुप्रतिमा। पृ. ३०२ अर्बुदगिरिस्थ श्री खरतरवसहि : अद्भुत भावनाट्यपूर्णा पांच नृत्यपरायणा वराङ्गनाओं के शिल्पचित्र । पृ० ३०३
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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