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________________ उपदेष्टा इतिहासप्रेमी, व्याख्यानवाचस्पति श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी का संक्षिप्त परिचय जन्म - वि० सं० १६४० का० शु० २ रविवार । उपाध्यायपद - वि० सं० १६८० ज्ये० शु० ८ | दीक्षा - वि० सं० १६५४ आषाढ़ कृ० २ सोमवार । सूरिपद - वि० सं० १९६५ वै० शु० १० सोमवार । I मध्ययुग में प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी भिन्नमाल से निकलकर अवध- राज्य के वर्त्तमान रायबरेली प्रगखान्तर्गत सालोन विभाग में जैसवालपुर- राज्य के प्रथम संस्थापक काश्यपगोत्रीय वीरवर राजा जैसपाल की आठवीं वंश - परिचय, माता-पिता की पीढ़ी में राजा जिनपाल का पुत्र अमरपाल हुआ है । अमरपाल यवनों से हार कर मृत्यु, दीक्षा लेना तथा गुरु- धौलपुर में आकर बसे थे और वहीं व्यापार-धन्धा करते थे । राज्यच्युत राजा श्रमरचरणों में दश वर्ष. पाल की चौथी पीढ़ी रायसाहव व्रजलाल जी हुये हैं। श्री ब्रजलाल जी की आप रामरत्न नाम से तृतीय सन्तान | आपके दो भ्राता और दो बहिनें थीं । वि० सं० १६४६ में आपके पिता रायसाहब के तीर्थस्वरूप माता, पिता का तथा एक वर्ष पश्चात् आज्ञाकारिणी स्त्री चम्पाकुंवर का और तत्पश्चात् उसी पक्ष में कनिष्ठ पुत्र किशोरीलाल का स्वर्गवास हो गया । रायसाहब का विकशित उपवन-सा घर और जीवन एक दम मुझ गया | रायसाहब एकदम राजसेवा का त्याग करके धौलपुर छोड़कर अपने बच्चों को लेकर भोपाल में जाकर रहने लगे और धर्म- ध्यान में मन लगाकर अपने दुःख को भुलाने लगे । चार वर्षों के पश्चात् सं० १६५२ में उनका भी स्वर्गवास हो गया। अब आपश्री के पालन-पोषण का भार आपके मामा ठाकुरदास ने संभाला । पिता की मृत्यु के समय तक श्रापश्री की आयु लगभग बारह-तेरह वर्ष की हो गई थी। आपको अपने भले-बुरे का भलिविध ज्ञान हो गया था । पितामह, पितामही, पिता, माता, कनिष्ठ आतादि की मृत्युओं से आपको संसार की व्यवहारिकता, स्वार्थपरता, सुख-दुःखों के मायावी फांश का विशद पता लग गया था । वैराग्य भावों ने
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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