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________________ मरण सुमरण बन जाता है। जैनशास्त्रों में मरण के निम्नांकित १७ भेद बताये हैं : (१) पण्डित-पण्डित-मरण : निर्वाण, मोक्ष, मुक्ति, अपुनर्भव। (२) प्रायोपगमन-पण्डित-मरण : संयमी का सेवा-निरपेक्ष मरण । (३) इङ्गिनी पण्डित-मरण : संयमी का पर-सेवा-निरपेक्ष मरण । (४) भक्त-प्रत्याख्यान-मरण : संयमी का सेवा-सापेक्ष मरण । (५) बाल-पण्डित-मरण : देश संयमी का सल्लेखना मरण । (६) बाल-मरण : असंयमी सम्यग्दृष्टि का मरण । (७) बाल-बाल-मरण : मिथ्यादृष्टि का मरण । (८) आवीचि-मरण : प्रतिक्षण होने वाला आयुःक्षयरूप मरण । (९) तद्भक्-मरण : वर्तमान आयु का अन्त । (१०) अवधि-मरण : पूर्व-भक्-सदृश मरण । 6 (११) आद्यन्त-मरण : पूर्व-भक-विसदृश-मरण । (१२) सशल्य-मरण : माया-मिथ्या निदानशल्यपूर्वक मरण । (१३) समुत्सृष्ट-मरण : रत्नत्रय छूटने पर होने वाला मरण। (१४) गृद्धपृष्ठ-मरण : हाथी-आदि के उदर-प्रवेशपूर्वक मरण । (१५) जिघ्रास-मरण : श्वास-निरोधादिपूर्वक मरण । (१६) अप्रशस्त-मरण : रत्नत्रय के साथ भी संक्लेशपूर्ण मरण । (१७) बलाका मरण : भ्रष्ट-साधु का मरण। जैन-साधना-पद्धति में व्रती गृहस्थ एवं महाव्रती साधु सल्लेखनापूर्वक संन्यास-मरण स्वीकार करते हैं। इस विधि में स्थित हू गृहस्थ 'साधक-श्रावक' और साधु 'क्षपक श्रमण' कहलाते हैं। कभी-कभी सल्लेखना की बाह्य प्रक्रिया इच्छा-मरण/आत्महत्या का भ्रम उत्पन्न करती है, अतः इसके वास्तविक मर्म से अपरिचित मस्तिष्क इसे अनुचित ठहराता है किन्तु इसके मर्म से परिचित होने पर वह स्वयं इसे समुचित स्वीकार करने लगता है। अपराधशास्त्र में एक दृष्टान्त आता है : ___दो ने बंदूकें दागी; दो को गोलियाँ लगी। प्रश्न-प्रतिप्रश्न के पश्चात् न्यायालय ने एक पर हत्या के प्रयास की धारा लगायी और
SR No.007251
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar Muni
PublisherPrakash C Shah
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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