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________________ BIGG 229ARRRRRRRC एक को लापरवाही बरतने का अल्प-दण्ड दिया। यद्यपि प्रथम की गोली से खरोंचमात्र आयी थी, तब भी उस पर बड़ी कार्यवाही हुई और बंदूक चलाने का अभ्यास करने वाले द्वितीय की गोली से हू गहरा-घाव होने पर भी उसे अल्प-दण्ड मिला। इसका कारण दोनों के अभिप्रायभेद हैं। तात्पर्य यह है कि घटनामात्र को देखकर किसी को अपराधी नहीं मान लिया जाता, जब तक उसका उद्देश्य स्पष्ट नहीं। ठीक इसी प्रकार देश के लिये अपनी जान देने वाला वीर जवान सम्मान का पात्र बन जाता है, शहीद गिना जाता है आत्मघाती नहीं। दुर्घटना अथवा प्राकृतिक प्रकोप में किंवा किसी की रक्षा हेतु प्राण-विसर्जन हो जाये, तो मरण के अभिप्राय का अभाव होने के कारण उसे आत्महत्या नहीं गिना जाता। सल्लेखना भी वास्तव में सती-प्रथा, आत्महत्या अथवा इच्छामृत्यु से मूलतः भिन्न प्रक्रिया है। इसमें धर्म के नाम पर किसी को गुमराह करने का प्रसंग ही नहीं है। सामान्यतः मृत्यु के निकटस्थ सामान्य मनुष्य का मोह प्रबल होने लगता है पर सल्लेखनाधारी वीरतापूर्वक उस मोह पर विजय पाने का पुरुषार्थ करता है और परिणामतः एक योद्धा के समान उसका वीरमरण होता है क्योंकि त्याग बिना मरना दुःखद होता है पर त्यागपूर्वक मरण सुखद होता है। मोह पर विजयपूर्वक मरण मृत्युमहोत्सव होता है, कुमरण नहीं। जैन-धर्म और जैन-दर्शन, (आचार व विचार) अहिंसाप्रधान है। यहाँ 'जीओ और जीने दो' की शैली है, मरने-मारने का प्रश्न छू उठता ही नहीं है। सल्लेखना-विधि प्राण-हनन के लिये कदापि नहीं, किन्तु निकट-काल में प्राणान्त का निर्णय होने पर मोह को जीतने के लिये अंगीकार की जाती है। जब शरीर धर्म में सहायक है, तब कौन विवेकी इसके त्याग की इच्छा करेगा? स्याही से भरी रीफिल कौन फेंकेगा? प्राणान्त समीप आने पर स्वयमेव बल क्षीण छ होने लगता है, अतः अन्नादि का क्रमिक त्याग जठराग्नि की मन्दता o में प्राणनाशक न होकर स्फूर्ति का कारण बनता है। यदि मृत्यु के व पूर्व भी स्वादिष्ट व्यंजनादि एवं अन्नाहारादि पूर्ववत् लेते रहे, तो मन्दाग्नि के कारण विषवत् अनिष्ट प्रभाव ही पड़ता है, अतः ParecRISEDASICORATSELEARCIRESEARCHESERICORISERAICORRESEARCHESEARCCESERECRASESASRCRASEARANCERTISEARCORRESERALICKRISEARASICORISESANGAAS RRRRREARCRAISEDIA
SR No.007251
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar Muni
PublisherPrakash C Shah
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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