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________________ मृत्यु महोत्सव पुराधीशो यदा याति, सुकृत्यस्य बुभुत्सया । तदासौ वार्यते केन, प्रपञ्चैः पाञ्च भौतिकैः ॥११॥ अन्वयार्थ - (यदा) जब (पुराधीशः) जीवात्मा ( सुकृत्यस्य ) पुण्य (बुभुत्सया) जानने की इच्छा से (याति) प्रयाण करता है, ( तदा) तब ( पाञ्चभौतिकैः प्रपञ्चैः) पञ्चभूत-संबंधी प्रपञ्चों के माध्यम से (असो) वह (केन) किसके द्वारा (वार्यते) रोका जा सकता है ? पूजा, दान, पठन शास्त्रों का, जप-तप, सेवा गुरु-जन की, दीन-दुखी जीवों पर करुणा, विधि है पुण्य-उपार्जन की । अपना अर्जित पुण्य देखने, जब चेतन तन से जाता, पंचभूत के प्रपंच से तब, कोई रोक नहीं पाता ॥ अन्तर्ध्वनि : जब जीव अपने पुण्य फल को जानने की इच्छा से इस अपवित्र देह को विसर्जित कर महाप्रयाण करता है, तब उसे पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के प्रपञ्चों द्वारा कौन रोक सकता है ? अर्थात् मरणोन्मुख मानव का मरण किसी भी विद्या से टाला नहीं जा सकता ! Essence: When the soul leaves this body to investigate its own auspicious deeds, who can prevent it through the treatments pertaining to the five bhūtas viz. water, air, fire, clay and space ? ११
SR No.007251
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar Muni
PublisherPrakash C Shah
Publication Year2011
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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