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________________ ऋषि भाषित प्रत्येकबुद्धभाषितानि ऋषिभाषितसूत्राणि ......... अध्ययन-[१०], .........मूलं [१] / गाथा [१] ......... मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित (पूर्वकाले आगमरूपेण दर्शित:) "ऋषिभाषित-सूत्राणि"-मूलं [१०] 'तेतलिपुत्त' अध्ययनं । प्रत सूत्रांक [१] Jeansector गाथा ||१|| ऋषिभाषि तेषु दीप अनुक्रम [१२४१२५]] कोह' (क) ठायेद पाण्णस्थ सगाइ' कमाइ (६) माइ। सद्धयं खलु भो समणा बद'ती, सद्धेय वलु माहणा० आहमेगोऽसधेयं यदिसामि तेतलिपुत्तेण अरहता इसिणा बुड्यं, सपरिजणोति णाम ममं अपरिज पोत्ति क में तं सद्दहिस्सती ? | सपुतंपि णाम मम अपुत्तेत्ति को में तं सद्दहिस्सती?। एव' समित्तंपि णाम ममं०, सवित्त पि णाम ममं सपरिग्गडं पाम ममं दाणमाणसवकारोक्यारसंगहिते तेतलिपुत्तस्स सयणपरिजणे विराग गते को मे तं सहहिस्सती ?। जातिकलरूचविणतोचयारसालिणी पाहिला नसिकार- ॥८॥ धूता मिच्छं विप्पडिचन्ना को में तं सहहिस्सति ? , कालक्कमणीतिसस्थविसारदे तेतलिपुत्ते विसाद गतेति को में त' सद्दहिस्सति ?, तेत ।।। १०-११ तेत लिपुतण आमच्चोण गिह पविसित्ता तालपुडके विसे पतितेत्ति सेविय से पडिहतेति को में त' साहहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण आमच्चेणं महति- लपुत्तमखमहालयं रुक्खं दुरहित्ता पासे छिपणे (तहावि ण मप) को मे त सहहिस्सति ?, तेतलिपुत्तण महतिमहालय पासाणं गीवाए पंधित्ता अत्थाहाए पुषखरिणीए अप्पा पक्विचे तत्थऽविय णं थाहे लद्धे को मे तं सद्दहिस्सति?, तेतलिपुत्तेण महतिमहालियं कदुरासी पलीवेना अप्पा पक्वित्तं सेऽवि य से अगणिकाए विज्झाए को मे त सहहिस्सति ?, तप णं सा पुट्टिला मूसिायारधूता पंचवषणाई सखि विणिताई वत्थाई पवर परिहिता अंतलिक्स्वपडिवण्णा एवं क्यासी-आउसो ! तेतलिपुत्ता ! एहि तो आयागाहि पुरओ विच्छिपणे गिरिसिहरकंदरप्पवाते पिडओ कंपेमाणेज्य मेइणितलं साकतेय पाय णिप्फोडेमाणेच अंबरतलं, सब्बतमोरासिव्य पिडिते, पचक्णमिव सर्य करते भीमरख करते महाचारणे समुहिए या सचक्युणिवापसु पयंडधणुजंतविप्पमुक्का पुंक्खमेत्तावसेला धरणिप्पवेसिणो सरा णिपतंति, हुक्यहाजालासहस्ससंकुलं समंततो पलित' धगधगंति सवारण्मा, अचिरेण य बालसूरगुंजनपुंजणिकरपकासं कियाइ इंगालभूत' गिह, आउसो ! तेतलिपुत्ता ! क वयामो ?, तते णं से तेतलिपुते अमच्चे पोहिल मूसियारधूत एवं क्यासि-पोहिले ! पहिता आयाणाहि, भीयस्स खलु भो पबम्जा, अभिउत्तस्स सवहणकिच्छ मातिस्ल रहस्सकिच्वं उक्कंठियस्स देसगमणकिच्छ पिवालियस्स पाणकिच्वं छुहियस्स भोयणकिच्चं पर अभिउंजिउँ कामस्स सस्थकिका खतस्स दंतस्स गत्तस्स जिति' दियस्स पत्तो ते एकमविण भवद ॥ एवं से सिद खडे०॥ १०॥ तेतलिपत्रणामम्झयण' ~18~
SR No.007208
Book TitleRushibhaashit Sootraaani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages67
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size24 MB
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