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________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [-] “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-२ अध्ययनं [-] निर्युक्ति: [३८९-३९७], वि० भा० गाथा [-] भाष्यं [ ४३...], मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः sa गया मुक्खं जाइ-जरा-मरणबंधणविमुक्का । तित्थयरा भगवंतो सासयसुक्खं निरावाहं ॥ ३८९ ॥ निगदसिद्धा ॥ एवं तावत् तीर्थकरानङ्गीकृत्य प्रतिद्वारगाथा व्याख्याता, इदानीं चक्रवर्त्तिनोऽङ्गीकृत्य व्याख्यायते, एतेषामपि पूर्वभववक्तव्यतानिबद्धं च्यवनादि प्रथमानुयोगादवसेयम्, साम्प्रतं चक्रवत्तिवर्णप्रमाणप्रतिपादनायाह saraar निम्मलकणगप्पभा मुणेअधा । छक्खंडभरहसामी तेसि पमाणं अओ पुच्छं ॥ ३९९ ॥ पंचसय अद्धपंचम वायालीसा य अद्धघणुअं च । इगुआलघणुस्सद्धं च चउत्थे पंचमे सत्त ॥ ३९२ ॥ पणतीसा तीसा पुण अट्ठावीसा य वीसइ घणूणि । पन्नरस बारसेव य अपच्छिमो सत्त य घणूणि ॥ ३९३॥ निगदसिद्धाः ॥ नामानि प्राक् प्रतिपादितान्येव, साम्प्रतं चक्रवर्त्तिगोत्रप्रतिपादनायाह- कासवत्ता सधे चउदसरयणाहिवा समक्खाया। देविंदवंदि एहिं जिणेहिं जिअराग दोसेहिं ॥ ३९४ ॥ सूत्रसिद्धा ॥ साम्प्रतं चक्रवर्त्त्यायुष्कप्रतिपादनायाह चउरासीई यावत्तरी अ पुद्दाण सयसहस्साई । पंच य तिन्निय एवं च सयसहस्सा व वासाणं ॥ ३९५ ॥ पंचाणइ सहस्सा चउरासीई अ अट्टमे सट्ठी । तीसा य दस य तिन्निय अपच्छिमे सत्त वाससया ॥ ३९६ ॥ गाथाद्वयं पठितसिद्धम् ॥ इदानीं चक्रवर्त्तिनां पुरप्रतिपादनायाहजम्मण विणी उज्झा सावत्थी पंच हत्थिणपुरस्मि । वाराणसि कंपिल्ले रायगिहे चैव कंपिल्ले ॥ ३९७ ॥ निगदसिद्धा एव ॥ साम्प्रतं चक्रवर्तिगातृप्रतिपादनायाह ין For Peace & Personal Use Ony ~ 201~ wanlibrary.org
SR No.007202
Book TitleAagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages325
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size28 MB
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