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________________ 12. “यह पुस्तक हर घर में होनी चाहिए।' -डॉ० महेंद्र, हेमेंद्र, विदिशा (म० प्र० ) 13. “अपने आलेखों पर जैनेतर पाठकों से प्राप्त सकारात्मक प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित होकर विद्वान युवा लेखक ने प्रस्तुत पुस्तक का प्रणयन किया है। यह जैन एवं जैनेतर सभी पाठकों को जैन धर्म का परिचय कराने में सहायक होगी।' -श्री रामाकांत, संपादक शोधादर्श (जुलाई 07 में प्रकाशित) 14. “यह यद्यपि एक लघु कृति है, किंतु गागर में सागर को चरितार्थ करती है।' -आचार्य राजकुमार इटारसी 15. “आपने काफ़ी परिश्रम से यह पुस्तक लिखी है, 'धन्यवाद'।' ___-शांतिलाल बैनाड़ा, आगरा 16. “प्रस्तुत कृति जैन धर्म के प्रारंभिक ज्ञान हेतु अत्यंत उपयोगी है। कोई अजैन बंधु भी इसका अध्ययन कर जैन धर्म का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इसमें सरल भाषा-शैली में और वह भी अत्यंत संक्षेप में जैन धर्म के अनेकानेक विषयों को इस तरह समझा दिया गया है, मानों गागर में सागर भर दिया हो। यह कृति जैन धर्म के विषय में पाठक को और अधिक जिज्ञासु बना देती है- यही इसकी सफलता है।" -डॉ० वीरसागर जैन, अध्यक्ष-जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली 17. “आपके द्वारा लिखी पुस्तक पढ़ी... नाम की सार्थकता है तथा आप जिन शासन की शान इसी तरह बढ़ाते रहें।” -सज्जनराज मेहता, बंगलुरु (ई-मेल द्वारा) जैन धर्म-एक झलक /
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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