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________________ | मत/अभिमत / 1. “इस कृति का घर-घर में स्वाध्याय होना चाहिए।' -आचार्य आनंद सागर ‘मौन प्रिय' 2. “जैन धर्म के संबंध में जैनों के ही समानांतर जैनेतरों की भी जिज्ञासा सहज ही रहती है, जिसका पूर्ति के निमित्त प्रस्तुत कृति अतिशय उपादेय है। युवा लेखक ने समीक्ष्य पुस्तक में निष्कर्ष के रूप में सिद्ध किया है कि जैन धर्म स्वतंत्र व मौलिक धर्म है। इसकी अग्रवस्तु या मुख्य प्रतिपाद्य न तो कहीं से आयातित है, न ही पर प्रत्ययनीत है। पारदर्शी शैली में प्रणीत इस कृति से लेखक के गंभीर अध्ययन का विशद परिचय मिलता है।" -कपूरचंद पाटनी, संपादक जैन गजट 3. “आपने छोटी-सी ही पुस्तक में बहुत सारे तात्विक विषयों को संजोने का प्रयास किया है।" -डॉ० शुगनचंद, डायरेक्टर, ISJS, नई दिल्ली/यू० एस० ए० 4. “पुस्तक की भूमिका एवं प्रथम अध्याय जैन धर्म की प्राचीनता से संबंधित भ्रांतियों को तोड़कर लोगों की आँखों को खोल देने में पूर्णतया समर्थ है।'' -डॉ० शुद्धात्म प्रकाश, प्राचार्य, वसुंधरा महाविद्यालय, जयपुर 5. “जैन धर्म की विशेषताओं का पता चला। मन में कई प्रश्न रहते थे, उनका समाधान सहज ही हो गया।" -डॉ० महेश त्रिपाठी, प्राचार्य, वाराणसी 6. “ये किताब जैन मज़हब की खूबियों को बताती है।'' -मजहर अब्बास, मजहर टेक्सटाइल्स, बनारस 7. "It is an excellent work. Your comparative study impressed me." - P.Jairajan, International School, Bangluru. (By SMS) 8. “इतनी जानकारी हमें कभी नहीं मिली। यह पुस्तक पूरे परिवार ने पढ़ी।” ___ -नंदकिशोर अग्रवाल, गीता साड़ीज, काशी 9. “यह पुस्तक छोटी ज़रूर है; पर एक अजनबी के लिए एक पूरी खुराक है।" -डॉ० आनंदप्रकाश, कोलकाता 10. “समाज में इस प्रकार की पुस्तक प्रथम बार उपलब्ध हो रही है। इस पुस्तक से जैन धर्म से अतिरिक्त धर्मावलंबी भी जैन धर्म के सिद्धांतों से अवगत होकर अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।" -डॉ० शीतला प्रसाद शुक्ला, पुराण विभाग, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली 11. “नई पीढ़ी के लिए पुस्तक उपयोगी है।" -डॉ० अमित, MS, ग्वालियर - जैन धर्म-एक झलक /
SR No.007199
Book TitleJain Dharm Ek Zalak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherShantisagar Smruti Granthmala
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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