SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ तत्त्वज्ञान तरंगिणी तृतीय अध्याय पूजन जीव अजीव अनादि अनंत तत्व दोनों ही पहचानो । आस्रव बंध अनादि सांत हैं तत्त्व अपेक्षा से जानो | निजानंदी स्वपर है ज्ञान मेरे पास ज्योतिर्मय । मोह मिथ्यात्व से विरहित सदा ही पूर्ण शिव सुखमय || शुद्ध चिद्रूप का आनंद मेरे मन को भाया है । अनंतों गुणों का सागर नाथ अब मैंने पाया है | ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. । निजानंदी सजग मेरा स्वभावी भाव है अपना । जलाऊं धूप कर्मो की कैरूं संसार सब सपना ॥ शुद्ध चिद्रूप का आनंद मेरे मन को भाया है । अनंतों गुणों का सागर नाथ अब मैंने पाया है ॥ ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्ट कर्म विनाशनाय धूपं नि. । निजानंदी महा शिव फल स्वभावी भाव से मिलता । मुक्ति का सौख्य अम्बुज भी स्वयं की शक्ति से खिलता॥ शुद्ध चिद्रूप का आनंद मेरे मन को भाया है । __ अनंतों गुणों का सागर नाथ अब मैंने पाया है | ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. । निजानंदी मिला है अर्घ्य अब पर पद नहीं भाता । शाश्वत पद अनर्घ्य अपना सतत ध्रुव सौख्य विख्याता | शुद्ध चिद्रूप का आनंद मेरे मन को भाया है । अनंतों गुणों का सागर नाथ अब मैंने पाया है | ॐ ह्रीं तृतीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy