SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी षोडशम अध्याय पूजन आध्यात्मिक जीवन जीने की कला जानता सम्यक् दृष्टि। . मुक्ति मार्ग पर सावधान हो चलने वाला यह सम दृष्टि॥ पूजन क्रमाकं १७ तत्त्वज्ञान तरंगिणी षोडशम अधिकार पूजन स्थापना छंद गीतिका तत्त्व ज्ञान तरंगिणी अध्याय है यह षोडशम । शुद्ध निज चिद्रूप पाने को करो नित परिश्रम ॥ परम पद की प्राप्ति के हित करो प्रतिपल शुद्ध ध्यान । निर्जरा हो परम उत्तम तभी होगा आत्म ध्यान || ॐ ह्रीं षोडशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं षोडशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ॐ ह्रीं षोडशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अष्टक छंद ताटंक हो वैराग्य नीर की वर्षा अन्तर्नभ प्रभु स्वच्छ बने । सिद्ध स्वरूपी शुद्ध आत्मा जन्म मरण का रोग हने ॥ लज्जा को तज कर वैराग्य याचना करने आया हूं। भव तन भोग उदास बनूं कब यही भाव उर लाया हूं ॥ ॐ ह्रीं षोडशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy