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________________ २८६ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी चतुर्दशम अध्याय पूजन द्वैत जब तक है ह्रदय में अशान्ति पाओगे । जहाँ भी जाओगे तुम वहाँ भ्रान्ति पाओगे || ४. ॐ ह्रीं संयमादिविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । विरागरत्नोहम् । मन वचन काय से वैराग्य प्राप्त कर लो तुम । सदगुरु तत्त्व वेत्ता से ज्ञान कर लो तुम ॥ शुद्ध चिद्रूप का चिन्तन ही श्रेष्ठ है प्रतिक्षण 1 शुद्ध चिद्रूप से कटते हैं कर्म के बंधन ॥ ४ ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनाागमाय अर्घ्य नि. । (५) मन अधीत्य सर्वशास्त्राणि निर्जने निरुपद्रवे । स्थाने स्थित्वा विमुच्यान्यचिंतां धृत्वा शुभासनम् ॥५॥ ५. ॐ ह्रीं शुभासनादिधारणविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । ज्ञानासनस्वरूपोऽहम् । बाह्य अरु अंतरंग सर्व परिग्रह तज लो । संयम स्वीकार करो शास्त्र अध्ययन कर लो ॥ शुद्ध चिद्रूप का चिन्तन ही श्रेष्ठ है प्रतिक्षण । शुद्ध चिद्रूप से कटते हैं कर्म के बंधन ॥५॥ ॐ ह्रीं चतुर्दशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनाागमाय अर्घ्यं नि. । (६) पदस्थादिकमभ्यस्य कृत्वा साम्यावलंबनम् । मानसं निश्चलीकृत्य स्वं चिद्रूपं स्मरन्ति ये ॥६॥ ६. ॐ ह्रीं पदस्थादिकध्याानावलम्बनरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । निरावलम्बनसमतारूपोऽहम् ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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