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________________ २६६ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी त्रयोदशम अध्याय पूजन शाश्वत जिनमार्ग पर जो चलेंगे सुख पाएंगे । विनश्वर भव मार्ग पर जो चलेंगें दुख पाएंगें ॥ जिन्हें मोक्ष की है अभिलाषा कर्म रहित होने की आशा। क्षय संक्लेश उपाय करें वे जिससे मिले विशुद्धि करें वे॥ परम शुद्ध चिद्रूप प्राप्ति श्रम। त्रिभुवन में ये ही सर्वोत्तम||३॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. । (४) सत्पूज्यानां स्तुतिनुतियजनं षटकमावश्यकानां वृत्तादीनां दृढतरधरणं सत्तपस्तीर्थयात्रा | संगादीनां त्यजनमजननं क्रोधमानादिकाना माप्तैरुक्तं वरतरकृपया सर्वमेतद्धि शुद्धयै ॥४॥ अर्थ- जो पुरुष उत्तम और पूज्य हैं, उनकी स्तुति नमस्कार और पूजन करना, सामायिक प्रतिक्रमण आदि छह प्रकार के आवश्यकों का आचरण करना, सम्यक् चारित्र का दृढ़ रूप से धारण करना, उत्तम तप और तीर्थयात्रा करना, बाह्य आब्यन्तर दोनों प्रकार के परिग्रहों का त्याग करना और क्रोध मान माया आदि कषायों को उत्पन्न न होने देना आदि विशुद्धि के कारण हैं। बिना इन बातों के आचरण किये विशुद्धि नहीं हो सकती। ४. ॐ ह्रीं षट्कर्मावश्यकादिविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । सरलबोधस्वरूपोऽहम् । _____चौपायी उत्तम पूज्य पुरुष की संस्तुति परमात्मा पूजा अरु स्तुति। सामायिक प्रतिक्रमण आदि सब षड आवश्यक क्रिया आदि सब || साधक चरित्र धारण करता तप व्रत तीर्थ यात्रा करता। सर्व परिग्रह त्याग अपावन क्रोध मान मायादि सर्व हन ॥ उर कषाय होने ना देना यही विशुद्धि ज्ञान में लेता । इनके बिना विशुद्धि नहीं है किसी भांति की शुद्धि नहीं है। परम शुद्ध चिद्रूप प्राप्ति श्रम। त्रिभुवन में ये ही सर्वोत्तम॥४॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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