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________________ २६० श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी त्रयोदशम अध्याय पूजन आस्रव के गड़बड़ झाले ने इस चेतन को भरमाया । गोरख धंधा अपनाकर चारों गतियों में दुखपाया ॥ पूजन क्रमाकं १४ तत्त्वज्ञान तरंगिणी त्रयोदशम अधिकार पूजन स्थापना छंद गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी अध्याय शुद्ध त्रयोदशम । शुद्ध निज चिद्रूप पाने का उपाय निजात्म श्रम || शुद्ध निज चिद्रूप पाने के लिए हो उर विशुद्धि । राग विरहित भावना हो तभी होगी परम शुद्धि ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अष्टक छंद विजया रूप की माधुरी ने मुझे घेरा है प्रभु । त्रिविध रोग देकर मुझे छल रही है || मेरे ज्ञान को ये बना करके अंधा । मेरी आत्मा को सतत छल रही है || करूं क्या बताओ मुझे प्रभु सुमति दो । मैं सन्मार्ग पाऊँ स्वकल्याण के हित ॥ -
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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