SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८४ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी नवम अध्याय पूजन खाज रोग से पीड़ित मानव उसे खुजाया करता है । इन्द्रिय रोगों से पीड़ित विषयादिक सेवन करता है ॥ ॐ पजन क्रमांक १० तत्त्वज्ञान तरंगिणी नवम अध्याय पूजन स्थापना गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी का यह नवम अधिकार है । शुद्ध निज चिद्रूप मंगलमयी शिव सुखकार है ॥ शुद्ध निज चिद्रूप का ही ध्यान करने के लिए । मोह तजना चाहिए निज ज्ञान करने के लिए ॥ ॐ ह्रीं नवम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं नवम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्तपानं । ॐ ह्रीं नवम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् 1 अष्टक छंद मानव निश्चय चरुणानुयोग का मुझकोआचरण सुहाया । जन्मादि रोत्र त्रय नाशक अवसर न कभी भी पाया ॥ चिद्रूप शुद्ध की कथनी ऊपर ही ऊपर जानी । अंतर में नहीं उतारी ऐसा हूँ मैं अज्ञानी ॥ ॐ ह्रीं नवम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy