SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 357 अनेकान्त- स्याद्वाद इस विषय को सरल बनाने का प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि इस प्रकरण की चर्चा के बिना नयों की चर्चा कलश - विहीन शिखर के समान है। प्रश्न 1 अनेकान्त किसे कहते हैं ? उत्तर - आत्मख्याति टीका के परिशिष्ट में आचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं - " जो वस्तु तत् है, वही अतत् है; जो एक है, वही अनेक है; जो सत् है, वही असत् है; जो नित्य है, वही अनित्य है इस प्रकार एक वस्तु में वस्तुत्व की उत्पादक (निष्पादक) परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशित होना, अनेकान्त है । " ― प्रश्न 2 स्याद्वाद क्या है ? उत्तर – आप्तमीमांसा, कारिका 104 में आचार्य समन्तभद्र कहते हैं- “ सर्वथा एकान्त का त्याग करके, कथंचित् विधान का नाम स्याद्वाद है। वह सात भंगों और नयों की अपेक्षा रखता है तथा हेयउपादेय भेद को बताता है । " - - - प्रश्न 3 अनेकान्त और स्याद्वाद में परस्पर क्या सम्बन्ध है ? - उत्तर आचार्य अमृतचन्द्र अनुसार “स्याद्वाद, समस्त वस्तुओं के स्वरूप को सिद्ध करनेवाला अर्हन्त सर्वज्ञ का अस्खलित (निर्बाध ) शासन है । वह कहता है कि अनेकान्त स्वभाववाली होने से सब वस्तुएँ अनेकान्तात्मक हैं।" इस प्रकार अनेकान्त और स्याद्वाद में द्योत्य- द्योतक सम्बन्ध है । - - प्रश्न 4 'अनेकान्त' शब्द का क्या अर्थ है ? - उत्तर 'अनेकान्त' शब्द अनेक + अन्त इन दो शब्दों से बनता है। अनेक अर्थात् एक से अधिक और अन्त अर्थात् धर्म। 'एक से अधिक' के दो से अनन्त के बीच अनेक अर्थ सम्भव हैं। 1
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy