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________________ 317 सैंतालीस नय. 13. स्थापनानय, 14. द्रव्यनय, 15. भावनय; 16. सामान्यनय, 17. विशेषनय; 18. नित्यनय, 19. अनित्यनय; 20. सर्वगतनय, 21. असर्वगतनय; 22. शून्यनय, 23. अशून्यनय; 24. ज्ञान-ज्ञेयअद्वैतनय, 25. ज्ञान-ज्ञेय-द्वैतनय; 26. नियतिनय, 27. अनियतिनय; 28. स्वभावनय, 29. अस्वभावनय; 30. कालनय, 31.अकालनय; 32. पुरुषकारनय, 33. दैवनय; 34. ईश्वरनय, 35. अनीश्वरनय; 36. गुणीनय, 37. अगुणीनय; 38. कर्तृनय, 39. अकर्तृनय; 40. भोक्तृनय, 41. अभोक्तृनय; 42. क्रियानय, 43. ज्ञाननय; 44. व्यवहारनय, 45. निश्चयनय; 46. अशुद्धनय एवं 47. शुद्धनय। उक्त 47 नयों की नामावली पर गहराई से विचार करने पर ज्ञात होता है कि नय क्रमांक 3 से 9 तक के नय सप्तभंगी सम्बन्धी हैं तथा 12 से 15 तक चार निक्षेप सम्बन्धी हैं। शेष 36 नय परस्पर विरुद्ध प्रतीत होनेवाले धर्मों को विषय बनानेवाले 18 धर्म-युगलों पर आधारित हैं। इन धर्म-युगलों में नय क्रमांक 20 से 25 तक तीन धर्मयुगल ज्ञान-ज्ञेय सम्बन्धी हैं और नय क्रमांक 26 से 35 तक पाँच युगल पाँच समवाय सम्बन्धी हैं। अन्य प्रकार से कहें तो प्रारम्भिक 15 नय आगम से सम्बन्धित, 16-23 तक चार युगल द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से सम्बन्धित, 24-25 का एक युगल ज्ञान-ज्ञेय से सम्बन्धित, 26-35 तक पाँच समवाय से सम्बन्धित, 36-41 तक तीन युगल साक्षी भाव से सम्बन्धित एवं 42-47 तक तीन युगल अध्यात्म से सम्बन्धित हैं। इन 47 नयों द्वारा भगवान आत्मा के 47 धर्मों को जानकर शेष अनन्त धर्मों का भी अनुमान किया जा सकता है तथा सम्यक् श्रुतज्ञान द्वारा अनन्तधर्मात्मक एक धर्मी आत्मा का अनुभव भी किया जा सकता है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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