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________________ 15 नय के तीन रूप शब्दनय, अर्थनय, ज्ञाननय निश्चयनयों के सामान्य स्वरूप पर चर्चा करते समय यह स्पष्ट किया गया था कि वस्तु में विद्यमान विभिन्न अंशों में से किसी एक अंश को मुख्य करके जानना, नय है । निश्चय - व्यवहारनय एवं द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकनय तथा उनके भेद - प्रभेदों की विस्तृत चर्चा से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये भेद-प्रभेद, वस्तु स्वरूप की कथन शैली अथवा उसके विभिन्न अंशों को विषय बनाने के आधार पर किये गये हैं । श्रुतज्ञान के अंश होने से नयों का ज्ञानात्मक स्वरूप तो प्रसिद्ध है ही, जिनागम में नयों के अर्थात्मक एवं शब्दात्मक स्वरूप का उल्लेख भी किया गया है, अतः मुख्यतः तीन रूपों में नयों का उल्लेख मिलता है - शब्दनय, अर्थनय एवं ज्ञाननय । इस सम्बन्ध में श्लोकवार्तिक का निम्नांकित कथन ध्यान देने योग्य है - उक्त सभी नय, दूसरों के लिए अर्थ का कथन करने पर शब्दनय हैं, ज्ञाता के लिए अर्थ का प्रकाशन करने पर ज्ञाननय हैं तथा उनके द्वारा ज्ञात किये वस्तु के धर्म अर्थ कहे जाते हैं, इसलिए वे अर्थनय हैं; अतः प्रधानता और गौणता से नयों के तीन भेद होते हैं। 1. श्लोकवार्तिक, नय विवरण, श्लोक 110-111
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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