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________________ 188 __- नय-रहस्य अवस्था में तथा ज्ञानी के ज्ञेय आदि के साथ संश्लेष सम्बन्ध होने पर किया जाता है। यहाँ द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र, गाथा 225-233 एवं श्रुतभवनदीपक नयचक्र, पृष्ठ 68-70 के आधार से असद्भूतव्यवहारनय के भेदों के नाम और प्रयोग, तालिका के माध्यम से स्पष्ट किये जा रहे हैं - नय का नाम प्रयोग 1. विजातीय द्रव्य में विजातीय 1. जैसे, एकेन्द्रिय आदि के शरीर द्रव्य का आरोप करनेवाला नय | को जीव कहना। 2. विजातीय गुण में विजातीय गुण | 2. जैसे, मतिज्ञान मूर्तिक है, क्योंकि का आरोप करनेवाला नय । वह मूर्तिक द्रव्य (कर्म/इन्द्रिय) से उत्पन्न होता है तथा वह मूर्त के द्वारा स्खलित होता भी है। 3. स्वजाति पर्याय में स्वजाति 3. जैसे, प्रतिबिम्ब को देखकर, पर्याय का उपचार करनेवाला यह वही है - ऐसा कहना। . नय 4. स्वजाति-विजाति द्रव्य में 4. जैसे, ज्ञान के विषय होने से स्वजाति-विजाति गुण का ज्ञेयों का ज्ञान (जीव/अजीव उपचार करनेवाला नय का ज्ञान) या ज्ञान के ज्ञेय कहना। 5. स्वजाति द्रव्य में स्वजाति | 5. जैसे, एकप्रदेशी परमाणु को विभाव पर्याय का उपचार बहुप्रदेशी कहना। " करनेवाला नय . 6. स्वजाति गुण में स्वजाति द्रव्य | 6. जैसे, रूप को भी द्रव्य कहना; का उपचार करनेवाला नय । जैसे, सफेद पत्थर।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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