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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 77 प्रकृति पुरुष के भोग तथा मोक्ष के लिए समस्त वस्तुओं का निर्माण करती है। जब तक सभी पुरुषों को मोक्ष नहीं मिल जाता है, तब तक विकास की क्रिया स्थगित नहीं हो सकती है; सचमुच प्रकृति पुरुष के उद्देश्य को प्रमाणित करती है। प्रकृति साधन और पुरुष साध्य है। इस प्रकार जब प्रकृति पुरुष के अधीनस्थ और पुरुष-आंश्रित है, तब पुरुष और प्रकृति को स्वतन्त्र तत्त्व मानना भ्रामक है। सांख्य प्रकृति की अपेक्षा पुरुष को अधिक महत्ता देकर विज्ञानवाद की ओर अग्रसर प्रतीत होता है। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि सांख्य अनीश्वरवादी दर्शन है, फिर भी सांख्यों ने पुरुष अर्थात् आत्मा के कल्याण से सम्बन्धित चर्चा अपने दर्शन में भरपूर की है, अतः सांख्य अध्यात्मवादी दर्शन है। (च) योगदर्शन में अध्यात्म योगदर्शन भी अध्यात्म को बल देता है। भोगों द्वारा चित्त भूमियाँ, अष्टांग साधन अध्यात्म के ही प्रतिपाद हैं, जिसका विस्तृत विवरण इस प्रकार है योगदर्शन के प्रणेता पतंजलि माने जाते हैं। इन्हीं के नाम पर इस दर्शन को 'पातंजल दर्शन' भी कहा जाता है। योग के मतानुसार मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए विवेक (ज्ञान) को ही पर्याप्त नहीं माना गया है, बल्कि योगाभ्यास पर भी बल दिया गया है। योगाभ्यास पर जोर देना इस दर्शन की निजी विशिष्टता है। इस प्रकार योगदर्शन में व्यावहारिक पक्ष अत्यधिक प्रधान है। योगदर्शन सांख्य की तरह द्वैतवादी है। सांख्य के तत्त्वशास्त्र को वह पूर्णतः मानता है। उसमें यह सिर्फ ईश्वर को जोड़ देता है, इसलिए योग को 'सेश्वर सांख्य' तथा सांख्य को 'निरीश्वर सांख्य' कहा जाता है। योगदर्शन के ज्ञान का आधार पतंजलि द्वारा लिखित 'योगसूत्र' को ही कहा जा सकता है। योगसूत्र में योग के स्वरूप, लक्षण और उद्देश्य की पूर्ण चर्चा की गयी है। योगसूत्र पर व्यास ने एक भाष्य लिखा है, जिसे 'योग भाष्य' कहा जाता है। यह भाष्य योगदर्शन का प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने भी योगसूत्र पर टीका लिखी है, जो 'तत्त्व वैशारदी' कही जाती है। सांख्य और योगदर्शन में अत्यन्त ही निकटता का सम्बन्ध है,
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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