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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 51 सत् की ओर ले चलो, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो' की पूर्ति हो जाती है। (ग) न्याय दर्शन में अध्यात्म न्याय-दर्शन ईश्वरवादी दर्शन है। न्यायदर्शन के पंचावयव वाक्य प्रमुखतम प्रतिपाद्य हैं। उसकी इसी प्रमुखता के कारण ही उसे परमन्याय कहा गया है। सोऽयं परमो न्यायः ।20 वह ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता है। न्यायसूत्र में जिसके रचयिता गौतम हैं, ईश्वर का उल्लेख मिलता है। कणाद ने ईश्वर के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा है। बाद के वैशेषिक ने ईश्वर के स्वरूप की पूर्ण चर्चा की है। इस प्रकार न्याय–वैशेषिक दोनों दर्शनों में ईश्वर की प्रामाणिकता मिली है, दोनों में अन्तर केवल मात्रा का है। न्याय ईश्वर पर अत्यधिक जोर देता है, जबकि वैशेषिक में उस पर उतना जोर नहीं दिया गया है। यही कारण है कि न्याय के ईश्वर सम्बन्धी विचार भारतीय दर्शन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्रमाण-शास्त्र के बाद न्याय-दर्शन का महत्त्वपूर्ण अंग ईश्वर विचार है। न्याय-ईश्वर को प्रस्थापित करने के लिए अनेक तर्क प्रस्तुत करता है। उन तर्कों को जानने के पूर्व न्याय द्वारा प्रतिष्ठापित ईश्वर का स्वरूप जानना अपेक्षित है। न्याय ने ईश्वर को एक आत्मा कहा है, जो चैतन्य से युक्त है। न्याय के मतानुसार आत्मा दो प्रकार की होती है – (1) जीवात्मा (2) परमात्मा । परमात्मा को ही ईश्वर कहा जाता है। ईश्वर जीवात्मा से पूर्णतः भिन्न है। ईश्वर का ज्ञान नित्य है। वह नित्य ज्ञान के द्वारा सभी विषयों का अपरोक्ष ज्ञान रखता है; परन्तु जीवात्मा का ज्ञान अनित्य, आंशिक और सीमित है। ईश्वर सभी प्रकार की पूर्णता से युक्त है, जबकि जीवात्मा अपूर्ण है। ईश्वर न बद्ध है और न मुक्त। बन्धन और मोक्ष शब्द का प्रयोग ईश्वर पर नहीं लागू किया जा सकता। जीवात्मा इसके विपरीत पहले बन्धन में रहता है और बाद में मुक्त होता है। ईश्वर जीवात्मा के कर्मों का मूल्यांकन कर अपने को पिता के तुल्य सिद्ध करता है। ईश्वर जीवात्मा के प्रति वही व्यवहार रखता है। जैसा व्यवहार एक पिता अपने पुत्र के प्रति रखता है। ईश्वर विश्व का सृष्टा, पालक और संहारक है। ईश्वर विश्व की सृष्टि शून्य से नहीं करता है। वह विश्व की सृष्टि पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि के परमाणुओं तथा आकाश, दिक्, काल, मन तथा आत्माओं के द्वारा करता
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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