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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 23 अकिंचन्य और ब्रह्मचर्य-ये दश धर्म हैं। - इन दशधर्मों के स्वरूप को द्यानतराय द्वारा दशलक्षण पूजा में देखा जा सकता है। इस पूजन की स्थापना में उन्होंने दशधर्मों के नाम गिनाये हैं - उत्तम छिमा मारदव आर्जव भाव हैं। सत्य शौच संयम तप त्याग उपाव हैं ।। आकिंचन ब्रह्मचर्य धरम दश सार हैं। .. चहुँगति दुःखते काढ़ि मुकति करतार हैं।। यह पूजन अन्य पूजनों की अपेक्षा वृहद् है; क्योंकि इसमें अंग पूजा को भी समाहित किया गया है। दशों धर्मों के पृथक्-पृथक् अर्घ्य दिये गये हैं।2 (3) रत्नत्रय पूजा-जैनदर्शन में तीन रत्न माने गये हैं। वे हैं - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र। चूंकि ये मोक्षमार्ग हैं; अतः इन्हें रत्न कहा जाता है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की स्तुति व महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए ही द्यानतरायजी ने रत्नत्रय पूजा को लिखा। इस पूजन में प्रारम्भ में स्थापना का पद है। पश्चात् आठ अर्घ्य के अष्टक हैं, जो कि सोरठा छन्द में लिखे गये हैं। उसके बाद प्रथम सम्यग्दर्शन पूजन है, जिसमें सम्यग्दर्शन के आठ अंगों को पूजने की बात की गयी है। इसकी जयमाला में सम्यग्दर्शन के पच्चीस दोषों की बात इस प्रकार कही गयी है आप आप निहचै लखै, तत्त्व प्रीति व्यवहार। रहित दोष पच्चीस हैं, सहित अष्ट गुनसार ।।24 __ पश्चात् सम्यग्ज्ञान पूजन में सम्यग्ज्ञान के पाँच भेद का वर्णन कर आठ अर्यों के पद हैं व अन्त में जयमाला में आठ प्रकार के सम्यग्ज्ञान का वर्णन किया है। सम्यक्चारित्र पूजन में स्थापना का पद दोहा छन्द में है, पश्चात् अर्घ्य सोरठा छन्द में लिखे हैं। जयमाला चौपाई मिश्रित गीता छन्द में निबद्ध है। अन्त में सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की समुच्चय जयमाला है, जो कि दोहा व चौपाई में लिखी गयी है। (4) सोलहकारण पूजा-दर्शनविशुद्धि आदि को सोलहकारण कहा
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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