SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अध्याय द्यानतराय का कर्तृत्व (क) रचनाओं का वर्गीकरण एवं परिचयात्मक अनुशीलन कविवर द्यानतराय आध्यात्मिक कोटि के सुकवि थे। उन्होंने जिनदेव, जिनगुरु, जिनशास्त्र और जिनधर्म से प्रभावित होकर साहित्य का सृजन किया। उनमें प्रायः सभी रचनाएँ विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्रकाशित हैं। उनकी मुख्य कृति द्यानतविलास में छोटी-बड़ी सभी रचनायें आ जाती हैं, जिसका प्रकाशन श्री जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, मुम्बई द्वारा हुआ है। जिसका प्रथम प्रकाशन फरबरी, 1914 में हुआ था। द्यानतविलास की विशेषता में जैन पुस्तक भवन, कलकत्ता से प्रकाशित द्यानतविलास पुस्तक की प्रस्तावना में कहा गया है कि उनकी द्यानतविलास नाम की एक विशाल रचना उपलब्ध है, जिसमें उनकी छोटी-बड़ी समस्त रचनाएँ संग्रहीत हैं। उसकी रचना आगरा में आरम्भ हुई और दिल्ली में 1770 में समाप्त हुई।' उनकी अन्य कृति चरचाशतक प्रकाशित है, जिसका प्रकाशन अलग-अलग जैन संस्थाओं ने किया है। चर्चाशतक वी. नि. सं. 2482 में सरस्वती भण्डार चुरुकों का रास्ता, जयपुर से प्रकाशित है। उनकी सभी आध्यात्मिक पूजनें जिनेन्द्र-अर्चना एवं वृहद् जिनवाणी संग्रह में संग्रहित हैं. जो कि 'अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, जयपुर' द्वारा प्रकाशित है। . उनकी कृति द्यानतविलास का सम्पादन श्री नाथूराम प्रेमी ने किया था एवं उन्होंने श्री जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, मुम्बई से प्रकाशित करवाया। जिसमें द्यानतराय के पदों का संग्रह जिसका नाम जैन पद-संग्रह (चौथा भाग), प्राकृत द्रव्यसंग्रह का पद्यानुवाद, चरचाशतक आदि हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रायः उनकी सभी कृतियों का प्रकाशन हुआ है। उनकी कृति द्यानतविलास की हस्तलिखित प्रति मुझे बड़े दीवानजी का मन्दिर, जयपुर से प्राप्त हुई, जिसकी छायाप्रति यहाँ उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत है। ' काव्य के भेदों में जायें तो हिन्दी काव्य शास्त्रों में काव्य के दो भेद मिलते हैं - 1. गद्य काव्य एवं 2. पद्य काव्य । द्यानतरायजी की कोई भी कृति गद्य में उपलब्ध नहीं है। उनका
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy