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________________ ___ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 171 सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र। इन तीनों की समन्वित आराधना करने पर ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए ही आचार्य भगवन्तों ने इसे त्रिरत्न अर्थात् रत्नत्रय कहा है। (1) सम्यग्दर्शन-तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ।92 अर्थात् सात तत्त्वों का यथार्थ श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है, इसे ही सम्यक्त्व भी कहा जाता है। इसे विवेक दृष्टि भी कहा जा सकता है। मिथ्यात्व से अभिभूत जीव साधारणतः सत्य को मिथ्या एवं मिथ्या को सत्य मानता है, किन्तु इसके विपरीत सत्य को सत्य एवं मिथ्या को मिथ्या समझना, सत्य पर श्रद्धा रखना ही सम्यग्दर्शन या सम्यक्त्व है। सम्यक्त्व के उदय होने पर ही जीव का आध्यात्मिक जीवन प्रारम्भ होता है। फलतः वह ज्ञेय को तात्त्विकरूप में जानकर हेय का परित्याग कर उपादेय को स्वीकार करने की अभिरुचि या मनोभावों से सम्पन्न होकर क्रमशः आध्यात्मिक मार्ग में अग्रसर होता रहता है। यह अवस्था ही सम्यग्दर्शन की अवस्था है। द्यानतराय भी उपर्युक्त प्रकार से वर्णन करते हुए लिखते हैं कि - बसि. संसार में पायो दुःख अपार ।। टेक।। मिथ्याभाव हिये धरयो, नहिं जानो सम्यकचार ।। काल अनादिहि हौ रुल्यों हो, नरक निगोद मँझधार। सुरनर पद बहुत धरे पद पद प्रति आतम धार ।। जिनको फल दुख पुंज है हो, ते जाने सुखकार । भ्रमपद पाय विकल भयौ, नहिं गह्यो सत्य व्योहार।। जिनवानी जानी नहीं हो, कुगति विनाशनहार । द्यानत अब सरधा करो, दुख मेटि लह्यो सुखसार।। 41193 सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने के लिए भेदविज्ञान अर्थात् स्व पर का ज्ञान आवश्यक है, इसको व्यक्त करते हुए द्यानतराय लिखते हैं - अब हम अमर भये न मरेंगे।।। तन कारन मिथ्यात दियो तज, क्यों करि देह धरेंगे।। उपजै मरे कालतै प्रानी, तातै काल हरेंगे। राग दोष जग बंध करत हैं इनको नाश करेंगे।। देह विनाशी मैं अविनाशी भेदज्ञान पकरेंगे। नासी जासी हम थिरवासी, चोख हो निखरेंगे।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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