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________________ 168 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना नय परमान निरवेपन मांही, एक न औसर पाय है। दरसन-ज्ञान-चरन के विकलप कहो कहाँ ठहराय है। 'द्यानत' चेतन चेतन है, पुद्गल पुद्गल थाय है।। मोहि।।80 (6) निर्जरा तत्त्व का निरूपण- खिरना, झड़ना, क्रम-क्रम से नष्ट होना निर्जरा है अर्थात् अपने ज्ञानानन्द स्वभावी आत्मा में विशेष स्थिरता की क्रमशः वृद्धि से एवं मोहादि विकारों की क्रमशः हानि से पूर्वबद्ध ज्ञानावरणादि कर्मों का क्रमशः खिरना, झड़ना, निर्जरा कहलाती है। कर्मों के खिरने की बात द्यानतराय ने भी यत्र-तत्र की है। जैसे कि उन्होंने रत्नत्रय पूजन की जयमाला में निर्जरा-तत्त्व का वर्णन किया है - जापै ध्यान सुधिर बन आवै, ताके करमबन्ध कट जावै। तासौं शिव-तिय प्रीति बढ़ावै, जो सम्यक् रत्नत्रय ध्यावै ।।91 इसी प्रकार दशलक्षण पूजन की जयमाला में भी निर्जरा तत्त्व का वर्णन इस प्रकार किया है - करै करम की निरजरा, भव पीजरा विनाशि। । अजर-अमर पद को लहै, 'द्यानत' सुख की राशि ।। 82 (7) मोक्षतत्त्व का निरूपण - छूटने को, मुक्त होने को मोक्ष कहते हैं अर्थात् अपने ज्ञानानन्द स्वभावी आत्मा में पूर्ण स्थिरता होने से सम्पूर्ण अशुद्धि का नाश तथा परिपूर्ण शुद्धि की प्रगटता का निमित्त पाकर ज्ञानावरणादि समस्त कर्मों का छूट जाना, नष्ट हो जाना, अकर्मरूप हो जाना मोक्ष कहलाता है। द्यानतराय ने चार घातिया और चार अघातिया अर्थात् ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के अभाव की बात इस प्रकार की है। मैं निज आतम कब ध्याऊँगा।। रागादिक परिनाम त्यागकै, समतासौ लौ लाऊँगा। मन-वच-काय जोग थिर करके, ज्ञान समाधि लगाऊँगा। . कंबहौं क्षपक श्रेणि चढ़ि ध्याऊँ, चारित मोह नशाऊँगा।। चारों करम घातिया खन करि परमातम पद. पाऊँगा।' ज्ञान दरश सुख बल भंडारा, चार अघाति बहाऊँगा।। परम निरंजन सिद्ध शुद्ध पद, परमानंद कहाऊँगा। द्यानत यह सम्पति जब पाऊँ, बहुरि न जग में आऊँगा।। मैं ||183
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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