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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 161 निश्चय साधना की बात को स्वीकार करने की बात करते हुए वे लिखते हैं - सुद्ध आतमा निहारि राग दोष टारि, क्रोध मान बंक गारि लोभ भाव भानुरे । पापपुन्यकौ विदारि सुद्धभाव कौं सँभारि। मर्मभाव कौं विसारि पर्मभाव आनुरे । चर्मदृष्टि ताहि जारि सुद्धदृष्टि कौं पसारि। देह-नेह कौं निवारि सेत ध्यान ठानुरे। जागि जागि सैन छारि भव्य-मोखको विहार। एक वारके कहै हजार वार जानु रे ।। 58 इस प्रकार निश्चय साधना मार्ग के अन्तर्गत द्यानतराय ने राग-द्वेष का निषेध एवं शुद्धात्मा के ही दर्शन, मनन व चिन्तन की बात की है। (10) सयोग केवली तथा जीवन मुक्त की स्थिति का वर्णन - द्यानतरायजी के आराध्य अरहंत और सिद्ध परमात्मा हैं, उन्होंने भी देव की सच्ची परीक्षा करके उनके प्रति असीम श्रद्धा एवं भक्ति दर्शायी है। पूर्ण वीतरागी सर्वज्ञ हो जाने पर भी जो परमात्मा अभी शरीर से सहित हैं, चार घातिकर्मों का अभाव हो जाने से अनन्त चतुष्टय प्रगट हो जाने पर भी, चार अघातिकर्म विद्यमान होने से जिनका अगुरुलघुत्व, अव्याबाधत्व आदि रूप सम्पूर्ण आत्मवैभव अभी प्रकट नहीं हुआ है; वे तेरहवें-चौदहवें गुणस्थानवर्ती अरहन्त भगवान, सकल परमात्मा सयोग केवली कहलाते हैं। इन्हीं को ही जीवन्मुक्त या भवमुक्त परमात्मा भी कहते हैं। इन्हें जीवन्मुक्त इसलिए कहते हैं, क्योंकि ये परमौदारिक शरीर सहित होते हैं और मनुष्यलोक (ढाई द्वीप) में रहते हैं, इसलिए. जीवन्मुक्त संसारी कहलाते हैं। ... अरहन्त के गुण एवं स्वरूप की चर्चा कवि ने इसप्रकार की है - एक ज्ञान केवल जिन स्वामी, दो आगम अध्यातम नामी। तीन काल विधि परगट जानी, चार अनन्त चतुष्टय ज्ञानी।। पंच परावर्तन परकासी, छहों दरब गुन परजय भासी। सप्तभंगवानी परकाशक, आठों कर्म महारिपु नाशक ।। नव तत्त्वन के भाखन हारे, दश लच्छन सों भविजन तारे।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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