SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 137 के अनुसार यह लोक पुद्गल वर्गणाओं से ठसाठस भरा है। उनमें से कुछ ऐसी पुद्गल वर्गणाएँ हैं, जो कर्मरूप परिणत होने की क्षमता रखती हैं। इन वर्गणाओं को कर्म वर्गणा कहते हैं। जीव की मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों के निमित्त से ये कार्माण वर्गणाएँ जीव की ओर आकृष्ट हो कर्मरूप में परिणत हो जाती हैं और जीव के साथ उनका सम्बन्ध हो जाता है। कर्म वर्गणाओं का कर्मरूप में परिणत हो जाना ही आस्रव है।143 द्यानतरायजी ने कर्मों के आने को रोकने के लिए भेदविज्ञान का सहारा लिया है। उनके पदों एवं भजनों में आस्रव निरोध की चर्चा बहुत आती है। उदाहरणस्वरूप - ज्ञानावरनादिक जमरूपी, जिनौं भिन्न निहार | रागादिक परिणति लख न्यारी, न्यारो सुबुध विचार ||घट ।।144 उसी प्रकार कर्मों का आना रुक जाना ही संवर है। संवर का मोक्षमार्ग में महत्त्वपूर्ण स्थान है। संवरपूर्वक होने वाली निर्जरा ही मोक्ष का कारण है। द्यानतरायजी ने भी जैन आगमानुसार ही संवर को परिभाषित किया है।145 उन्होंने संवर को निर्विकल्परूप एवं आस्रव को सविकल्प कहा है। आतमतत्त्वतने द्वै भेद, निरविकल्प सविकलप निर्वेद । निरविकलप संवर कौ मूल, विकलप आस्रव यह जिय भूल ||146 इस प्रकार द्यानतराय ने आस्रव निरोध की चर्चा कर शुद्धात्मा को पहचानकर निर्विकल्प रूप संवर को प्राप्त करने की प्रेरणा दी है।147 कर्मों के आंशिकरूप से झड़ने को निर्जरा कहते हैं। निर्जरा वही जीव कर सकता है, जो अपने शुद्ध आत्मतत्त्व को प्राप्त करता है। बिना आत्मा के पहचाने कर्मों की संवर, निर्जरा सम्भव नहीं है अर्थात् संवर, निर्जरा आत्मज्ञानी जीव के ही सम्भव है। द्यानतराय ने भी कर्मों को नष्ट करने के लिए आत्मज्ञान को श्रेष्ठ माना है148- निर्जरा करनेवाले जीव को मोक्ष सुख मिलता है। वह संसार दुःख को छोड़कर अनन्तकाल तक मोक्ष सुख को प्राप्त करता है। करै करम की निरजरा, भव पीजरा विनाशि। अजर अमर पद को लहैं, द्यानत सुख की राशि।।149 द्यानतराय आध्यात्मिक कवि थे, अतः उन्होंने कर्मों को दुःखरूप, दुःखदायक तथा संसारभ्रमण के कारण बताकर उनसे मुक्त होने की प्रेरणा दी है। उनका सम्पूर्ण काव्य शुद्धात्मा की पहचान, ज्ञान व उसमें लीनता के गीतों से भरा हुआ है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy