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________________ 124 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना समूल नष्ट कर सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप निरपराधी दशा प्रगटकर सुखी हो सकता है। . . सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का वास्तविक स्वरूप समझकर उन्हें ही यथार्थ देव-शास्त्र-गुरु मानने से तथा अन्य रागादि सहित रागादिपोषक किन्हीं को भी सच्चे देव-शास्त्र-गुरु नहीं मानने से गृहीत मिथ्यादर्शन नष्ट होता है। इसी सत्य श्रद्धानपूर्वक रागादिपोषक शास्त्रों को सत् शास्त्र नहीं जानने, रागादि सम्पन्न देव-गुरु को सच्चा देव-गुरु नहीं जानने से गृहीत मिथ्याज्ञान नष्ट होता है तथा प्रशंसा आदि के लोभ से, पूजा-प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करने की भावना से मूढ़तामय बाह्याचरण का पालन नहीं करने से एवं आत्मा-अनात्मा का विवेक जागृत कर सम्यक् आचरण करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। जीवादि प्रयोजनभूत तत्त्वों का यथार्थ ज्ञान श्रद्धान कर आत्मानुभव करने से अगृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञानचारित्ररूप अज्ञान नष्ट हो जाता है। अज्ञानता का कारण मिथ्यात्व द्यानतरायजी ने अपने पदों में जगह-जगह अज्ञान का अभाव कर शुद्धतत्त्व देखने का उपदेश दिया है और उन्होंने अज्ञान के कारण जीव की मान्यता का वर्णन उपदेशशतक में इस प्रकार किया है - . . मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौं रागी माने। मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौं दोषी जानै।। मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौं रोगी देखै। मिथ्यादृष्टी जीव, आपकौ भोगी पेखै ।। जो मिथ्यादृष्टी जीव, सो शुद्धातम नाहीं लहैं। सोई ज्ञाता जो आपकौं, जैसा का तैसा गहैं।। 106 || अज्ञान के कारण जीव की अवस्थाओं का वर्णन कर शुद्धात्मा को अंगीकार करने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि - बहिरातम के भाव तजि, अंतर आतम होय। परमातम ध्यावै सदा, परमातम सो होय ।। 117 अर्थात् बहिरात्मा के भाव को छोड़कर अन्तरात्मा बनने की कोशिश करना चाहिए और परमात्मा को ध्याने से ही परमात्मा बन सकते हैं। अज्ञान का अभाव कर ज्ञान प्राप्ति करना ही श्रेयस्कर है, ज्ञान प्राप्ति से समस्त दुःखों का अभाव होकर जीव पूर्ण सुखी बनता है। द्यानतरायजी ने भी अज्ञान को मिटाकर ज्ञान प्रकटाने का मार्गदर्शन दिया है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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