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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 99 (ख) द्यानतराय के काव्य में अध्यात्म द्यानतराय आध्यात्मिक कोटि के सुकवि थे। उन्होंने जिनदेव, जिनगुरु, जिनशास्त्र और जिनधर्म से प्रभावित होकर काव्य की रचना की। कविवर द्यानतराय ने अपने साहित्य में दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक विचारों को अभिव्यक्त किया है। मूलतः द्यानतराय के साहित्य में जैनधर्म का स्वर प्रतिध्वनित होता . है। यद्यपि उनका साहित्य धार्मिकता से ओतप्रोत है, फिर भी उसमें साहित्यिक सौष्ठव दर्शनीय है। वैसे भी किसी धार्मिक रचना का साहित्य होने के साथ विरोध नहीं है; इसलिए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदीजी जैसे मनीषी विद्वान समस्त धार्मिक एवं आध्यात्मिक साहित्य को काव्य की सीमा में स्वीकार करते हुए निर्देश देते हैं - धार्मिक प्रेरणा या आध्यात्मिक उपदेश होना काव्यत्व का बाधक नहीं समझा जाना चाहिए । द्यानतराय के साहित्य में जैनधर्मानुप्राणित विचार निम्न हैं - (1) द्यानतराय के आत्मा-परमात्मा पर विचार- संसार के धर्मों में धर्म की व्याख्या अपने-अपने दृष्टिकोण से की गई है, किन्तु जैनधर्म में कहा है – 'वत्थु सहावो धम्मो' अर्थात् वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। जैसे अग्नि का स्वभाव जलाना, पानी का स्वभाव शीतलता, आकाश द्रव्य. का स्वभाव अवगाहना देना, धर्म द्रव्य का चलने में व अधर्म द्रव्य का ठहरने में निमित्त होना, काल द्रव्य का वर्तना में निमित्त होना और पुदगल द्रव्य का स्वभाव स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण है। इसी प्रकार आत्मद्रव्य का स्वभाव जानना और देखना है। इस आत्मा के बारे में प्रायः विश्व के सभी धर्मों ने ज्यादा कुछ नहीं कहा। अधिकतर धर्म तो इसकी व्याख्या के बारे में मौन हैं। वे ईश्वर की एक कृति को ही आत्मा कहते हैं। कछ वस्तुओं के संयोग से एक चेतना शक्ति उत्पन्न हो जाती है, उसी को आत्मा कहते हैं, जो कुछ समय बाद नष्ट हो जाती है। कुछ अदृश्य सर्वशक्तिमान आत्मा है, उसे ईश्वर कहते हैं। वही जगत का कर्ता-धर्ता है व सभी आत्माओं (प्राणियों) में उसी की सत्ता स्वीकार करते हैं और जब प्राणी मर जाता है तो वह आत्मा उसी में विलीन हो जाता है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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