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________________ सम्यग्दर्शन और उसका विषय (प्रथम) दृष्टि का विषय इस विवेचन से यह स्पष्ट है कि शुद्ध ध्रुव जीवतत्त्व अनन्त शक्तियों का अखंड पिण्ड है और पर्याय से निरपेक्ष है। क्षणिक होने के कारण केवलज्ञानादि शुद्ध पर्यायें भी इसकी अपेक्षा विभाव अथवा अजीव कही जाती हैं। सम्यग्दर्शन का जीव यदि शुद्ध ध्रुव परम पारिणामिक तत्त्व स्वरूप आत्मतत्त्व है, तो फिर ध्रुव जीवतत्त्व के स्वभाव से मेल न खाने वाली सभी विकारी निर्विकारी क्षणिक पर्यायें उसके लिए अजीव सिद्ध हो गईं। केवलज्ञानादि शुद्ध पर्यायों को भी उसी ध्रुवत्व का अवलम्बन है। ध्रुव तत्त्व ही सभी शुद्ध पर्यायों का एकमात्र उपास्य देवता है। क्षणिक पर्याय का अवलम्बन तो उस धसकने वाली धरा के समान है, जिस पर बैठनेवाला उस धरा के साथ स्वयं धसक जाता है। जैसे मोदक के कोष में से मोदक निकाल कर खाने के उपरान्त यदि मोदक के कोष को विस्मृत कर दे और केवल प्रगटरूप मोदक पर ही अपनी दृष्टि केन्द्रित कर ले तो प्रगटरूप मोदक की समाप्ति पर दूसरा मोदक कहाँ से आयेगा ? कोष पर तो दृष्टि है नहीं और प्रगटरूप मोदक समाप्त ही हो गया है, अतः अब तो विकलता की संतति ही अभिवृद्ध होगी। इसी प्रकार आत्मा के ध्रुवस्वभाव पर दृष्टि न होकर जिसकी वर्तमान मनुष्यादि पर्यायों पर ही दृष्टि है, उन्हीं को जो आत्मा स्वीकार करता है, उसे उस पर्याय के अवसान में तीव्र क्लेश होगा। ज्ञानी को वर्तमान पर्याय के अवसान के समय भी मेरा कुछ नहीं जा रहा है, मैं तो नित्य शुद्ध अक्षय तत्त्व हूँ, ऐसी प्रतीति का अनूठा बल विद्यमान है।
SR No.007142
Book TitleChaitanya Ki Chahal Pahal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugal Jain, Nilima Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year2012
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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