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________________ उपादान-निमित्त की स्वतन्त्रता 51 यह मात्र विकल्प को निमित्त कहा जाता है। पञ्च महाव्रतादि के विकल्प को चारित्र का निमित्त कब कहा जाता है ? यदि स्वभाव में लीनता का पुरुषार्थ करके चारित्रदशा प्रगट करे तो विकल्प को उसका निमित्त कहा जा सकता है। यह मान्यता मिथ्या है कि पञ्च महाव्रत के विकल्प के आश्रय से चारित्र प्रगट होता है तथा मैं व्यवहारसम्यग्दर्शन, व्यवहारसम्यग्ज्ञान और व्यवहारसम्यक् चारित्र के परिणाम करूँ, तो उससे निश्चयसम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र प्रगट होते हैं - यह मान्यता भी मिथ्यात्व है। समय-समय की स्वतन्त्रता और भेदज्ञान यह प्रत्येक वस्तु के स्वतन्त्र स्वभाव की बात है। स्वभाव की स्वतन्त्रता को न समझे और यह माने कि 'निमित्त से कार्य होता है' तो वहाँ सम्यक्श्रद्धा-ज्ञान नहीं है और सम्यक्श्रद्धा-ज्ञान के बिना शास्त्र का पठन-पाठन सच्चा नहीं है, व्रत सच्चे नहीं हैं, त्याग सच्चा नहीं है। प्रत्येक वस्तु में समय-समय की पर्याय की स्वतन्त्रता है। प्रत्येक पदार्थ में उसी के कारण से अर्थात् समय-समय की उसकी पर्याय की योग्यता से कार्य होता है। पर्याय की योग्यता उपादानकारण है और उस समय, उस कार्य के लिए अनुकूलता का आरोप जिस पर आ सकता है - ऐसी योग्यतावाली दूसरी वस्तु को निमित्त कहा जाता है; किन्तु उस निमित्त के कारण वस्तु में कुछ परिवर्तन नहीं होता - ऐसी उपादान-निमित्त की भिन्नता की यथार्थ प्रतीति ही भेदज्ञान है। आत्मा और जड़ सब की पर्याय स्वतन्त्र है। जीव को पढ़ने का विकल्प हुआ, इसलिए पुस्तक हाथ में आ गयी - ऐसी बात नहीं है
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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