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________________ उपादान-निमित्त की स्वतन्त्रता 49 इस सिद्धान्त से यह निश्चित हुआ कि मिट्टी में जिस समय पिण्डरूप अवस्था थी, उस समय उसमें घड़ारूप अवस्था की योग्यता ही नहीं थी; इसलिए उससे घड़ा नहीं बना, परन्तु यह बात मिथ्या है कि मिट्टी में घड़ारूप होने की योग्यता तो थी, परन्तु कुम्हार नहीं था, इसलिए घड़ा नहीं बना। जीव निमित्तों को मिला या हटा नहीं सकता ... मात्र अपना लक्ष्य बदल सकता है। जीव अपने में शुभभाव कर सकता है किन्तु शुभभाव करने से वह बाहर के शुभ निमित्तों को प्राप्त कर सके अथवा अशुभ निमित्तों को दूर कर सके - यह बात नहीं है । जीव स्वयं अशुभ निमित्तों से अपना लक्ष्य हटाकर शुभ निमित्तों का लक्ष्य कर सकता है किन्तु निमित्तों को निकट लाने अथवा दूर करने में वह समर्थ नहीं है। किसी जीव ने जिनमन्दिर अथवा किसी अन्य धर्मस्थान का शिलान्यास करने का शुभभाव किया; इसलिए जीव के भाव के कारण बाह्य में शिलान्यास की क्रिया हुई - ऐसा नहीं है। जीव निमित्त का लक्ष्य कर सकता है अथवा लक्ष्य छोड़ सकता है, किन्तु वह निमित्तरूप परपदार्थों में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता। वस्तु का ऐसा ही स्वभाव है, इसे समझना ही भेदज्ञान है। पञ्च महाव्रत के राग और शुद्धचारित्रदशा की भिन्नता एवं ___चारित्र व वस्त्रत्याग दोनों की स्वतन्त्रता जिसे आत्मा की निर्मल, वीतरागचारित्रदशा होती है, उसके वह दशा होने से पूर्व चारित्र अङ्गीकार करने का विकल्प उत्पन्न होता है। जो विकल्प उत्पन्न हुआ, वह तो राग है, उसके कारण
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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