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________________ आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं - चिकाय की आराधना / 23 अर्हत सिद्धाचार्य पाठक, साधु हैं परमेष्ठी पण । सब आतमा की अवस्थायें, आत्मा ही है शरण ।। अर्हतादिक पंच परमेष्ठी हैं आत्मा में ही चेष्टारूप हैं, आत्मा की ही अवस्थाएँ हैं, इसलिये आत्मा ही शरण है । ये पाँच पद आत्मा के ही हैं। जब रत्नत्रय स्वरूप मोक्षमार्ग को साधता है तब साधु कहलाता है। जब पठनपाठन में तत्पर मुनि होता है तब उपाध्याय कहलाता है। जब दीक्षा देने वाला होता है तब आचार्य कहलाता है। जब घाति कर्म का नाश करता है तब अर्हंत कहलाता है। जब अघाति कर्मों का नाशकर निर्वाण को प्राप्त होता है तब सिद्ध कहलाता है । इस प्रकार पांचों पद आत्मा ही हैं। इसलिये आचार्य कहते हैं कि जो इस देह में आत्मा स्थित है वह यद्यपि कर्मों से आच्छादित है तो भी पाँचो पदों के योग्य है । निश्चय से इसके शुद्ध स्वरूप का ध्यान करना पाँचो पदों का ध्यान करना है। व्यवहार से पंचपरमेष्ठी शरणभूत हैं और निश्चय से एक निज चिकाय ही ' शरणभूत है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप ये चार आराधनायें हैं, ये सभी आत्मा में ही चेष्टा रूप हैं, आत्मा की ही अवस्थायें हैं। आत्मा की रुचि रूप परिणाम सम्यग्दर्शन है, संशय, विमोह एवं विभ्रम से रहित ज्ञान सम्यग्ज्ञान है, रागद्वेषादिक रहित परिणाम होना सम्यक्चारित्र है। भाई! यह अमूल्य मनुष्य भव मिला है, कल्याण करने का सब तरह से अवसर प्राप्त हुआ है। इसलिये तू मरण का समय आने से पहले ही चेत जा, सावधान हो जा, सदा शरणभूत निज शुद्धात्म द्रव्य का अनुभव करने का प्रयत्न कर । अपनी ही चैतन्य काया में सर्व उद्यम से अपने उपयोग को जोड़ दे। अरहंते
SR No.007134
Book TitleChidkay Ki Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaganmal Sethi
PublisherUmradevi Jaganmal Sethi
Publication Year2000
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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