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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान / १५ यह सम्पूर्ण सुखों से निर्मित वेदनीय का कहीं न नाम । जितने सिद्ध महाप्रभु हैं उनमें यह करता है विश्राम ॥ ॐ ह्रीं अनंतगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अर्ध्यं निर्वपामीति स्वाहा। गुण क्षायिक सम्यक्त्व श्रेष्ठ है तीनों लोकों में विख्यात । इसके होने पर ही होता महामोक्ष का विमल प्रभात ।। महामोहतम का नाशक है दृढ़ श्रद्धा का है आधार । अर्घ्य चढ़ाऊँ विनय भाव से पाऊँ ध्रुव श्रद्धान अपार ॥ ॐ ह्रीं क्षायिकसम्यक्त्वगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। गुण अवगाहनत्व सिद्ध परमेष्ठी का पावन शृंगार । चार आयु का क्षयकर्ता है शिवसुख देता अपरंपार ॥ परमानंद समुद्र यही है चारों गति से सदा विहीन । भक्तिभाव से अर्घ्य समर्पित करके होऊँ परम प्रवीण ॥ ॐ ह्रीं अवगाहनत्वगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । गुण सूक्ष्मत्व परम महिमामय नाम कर्म से रहित सदा । तेरानवे प्रकृति से विरहित सादि अनंत काल सुखदा ॥ सूक्ष्मत्व गुण को मैं अर्घ्य चढ़ाऊँ शुद्ध भावनामय । बनूँ सिद्ध परमेष्ठी इक दिन साधक रहूँ साधनामय ॥ ॐ ह्रीं सूक्ष्मत्वगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अर्ध्यं निर्वपामीति स्वाहा । अगुरुलघुत्व स्वगुण की गरिमा सिद्धस्वपदधारी पाते । गोत्र कर्म से विरहित होकर सिद्धशिलापति हो जाते ॥ अर्घ्य चढ़ाऊँ अगुरुलघुत्व सुगुण को हे अन्तर्यामी । समभावी हो साम्यभाव रस पियूँ सदा ही हे स्वामी ॥ ॐ ह्रीं अगुरुलघुत्वगुणसमन्वितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अर्ध्यंनिर्वपामीति स्वाहा। पूर्ण अनंतवीर्य गुण पावन शाश्वत बल का दाता है। पंचलब्धियों का दाता है आगम में विख्याता है ।।
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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