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________________ 0 सन्तोष सुखी जीवन की कुंजी है। किसी व्यक्ति के पास अरबों-खरबों की सम्पत्ति हो जाये, परन्तु उसके जीवन में यदि सन्तोष नहीं है तो वह कभी सुखी नहीं हो सकता। सन्तोषी स्वल्पसाधनों में भी सुखी होता है। जीवन का अन्तिम लक्ष्य त्याग है, भोग नहीं / त्यागी इस जन्म में भी और आगे के जन्मों में भी सुखी होता है / भोगी यहाँ भी दुःखी रहता है और जन्म-जन्म तक तृष्णा की ज्वाला में जलता रहता है। शरीर और आत्मा, ये दोनों भिन्न-भिन्न तत्व हैं / शरीर जड़ है, उसकी स्वयं में अपनी अनुभूति की शक्ति नहीं है / कर्म सहित आत्मा ही सुख-दुख का कर्ता और भोक्ता है। (अन्दर के पृष्ठों से)
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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