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________________ उसने अनशन पूर्वक देह त्याग किया और सौधर्म कल्प के अरुणाभ विमान में देव रूप में उत्पन्न हुआ। वहां की चार पल्योपम की आयु पूर्ण कर वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और श्रमण चर्या द्वारा सिद्धगति प्राप्त करेगा। सारांश मिथ्या/गलत अथवा असत्य सिद्धान्तों में भी अटूट आस्था, दृढ़ विश्वास और निश्चयात्मक बुद्धि हो सकती है, जैसी कि पोलासपुर निवासी शकडालपुत्र की थी। उसके रोम रोम में यह बस गया था कि नियतिवाद सत्य सिद्धान्त है ; जीव तो प्रकृति के हाथ का खिलौना है, वह अपनी ओर से कुछ नहीं कर सकता। । एक तथ्य यह भी है कि मिथ्या सिद्धान्त में कितनी ही गहरी पैठ हो, कितना ही अटल निश्चय हो, फिर भी उसे हटाया जा सकता है; मिथ्या धारणा को बदलने की संभावना सदा रहती है। 3 और यह भी एक तथ्य है - जिस मिथ्यावादी में ग्रहणशीलता होती है, वह पुरानी से पुरानी धारण की हुई मिथ्या धारणा को छोड़ने और सत्य को धारण करने में तत्पर रहता है । शकडालपुत्र, ग्रहणशील नियतिवादी था । भगवान महावीर के सीधे-सरल और अत्यन्त व्यावहारिक तर्कों को सुनते ही शकडालपुत्र ने नियतिवाद का त्याग कर दिया और श्रावकव्रती साधक बन गया था। 'व्यक्ति को अपने धर्माचार्य के अतिरिक्त दूसरे सिद्धान्तवादियों का भी समादर करना चाहिए। इसे आधार मानकर महावीरोपासक शकडालपुत्र ने तटस्थ भाव से गोशालक के पधारने पर उसका भी यथोचित आदर किया था। - एक बार सत्य का दर्शन हो जाने के बाद साधक को साधना से कोई भ्रष्ट नहीं कर सकता,शकडालपुत्र नियति के सिद्धान्त में अनुरक्त था। लेकिन जब भगवान महावीर से उसे सत्य का बोध प्राप्त हो गया तो गोशालक भी अपने पूर्वभक्त को महावीर के सत्य सिद्धान्त से डिगा नहीं पाया था। शब्दार्थ himirma प्रातिहारिक = साधु-साध्वी द्वारा आवश्यकता न होने पर गृहपति को वापस लौटाने योग्य पाट आदि वस्तुयें। फलक = पट्टा ।सिद्धि = समस्त कर्मों के क्षय से प्राप्त होने वाली अवस्था । शय्या = सोने का तख्त धर्मदण्ड = धर्म का दण्ड / अनुशासन सद्धर्म = सच्चा धर्म शास्त्रार्थ = शास्त्र के सिद्धान्तों पर विवाद / बहस 54/महावीर के उपासक
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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