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________________ पत्नी पर बल प्रयोग करने वाले के प्रति तुम्हारे मन में मार डालने के भाव क्यों आए ?" शकडालपुत्र अपने ही उत्तर में फंस गया। विचार करने पर उसे लगा कि भगवान महावीर का पुरुषार्थवाद यथार्थ है और गोशालक का नियतिवाद मिथ्या है। अतः उसने महावीर प्रभु से निर्ग्रन्थ धर्म स्वीकार कर लिया। भगवान महावीर द्वारा कथित श्रावक के बारह व्रत ग्रहण करके वह भगवान महावीर का श्रेष्ठ श्रावक /उपासक बन गया। यथा समय महाश्रमण महावीर अन्यत्र विहार कर गए। शकडालपुत्र निष्ठापूर्वक श्रावक व्रतों का पालन करने लगा। पति के बाद पत्नी अग्निमित्रा ने भी भगवान महावीर से धर्मव्रत ग्रहण कर लिये थे। गोशालक को पता चल गया कि उसके अनन्य भक्त शकडाल पुत्र की आस्था में परिवर्तन हो गया है। वह महावीर का उपासक बन गया है। तो गोशालक को बड़ा मलाल हुआ। वह पोलासपुर पहुंचा । अपने कुछ अनुयाइयों को लेकर सीधा शकडालपुत्र के घर गया। पर इस बार शकडाल पुत्र ने गोशालक का स्वागत सम्मान से नहीं किया। गोशालक समझ गया सचमुच शकडाल की आस्था नियतिवाद से डगमगा गई है। अपने उद्देश्य में सफल होने के विचार से गोशालक ने प्रतीकों के माध्यम से भगवान महावीर की प्रशंसा करना प्रारम्भ कर दिया,इसी क्रम से उसने प्रश्न किया - "शकडाल पुत्र! क्या यहां पोलासपुर में कोई महामहिम पुरुष आये थे?" महामहिम पुरुष कौन है ? शकडाल पुत्र ने कहा आप ही बताइए।' क्या तुम नहीं जानते हो त्रिशलानन्दन वर्द्धमान महावीर महामहिम हैं ? इस पर शकडालपुत्र ने पूछा "वे महामहिम कैसे हैं ? गोशालक ने उत्तर दिया - "दर्शन सम्पन्न और ज्ञान सम्पन्न होने के कारण महावीर महामहिम है। इसी प्रकार के प्रश्नोत्तर में गोशालक ने भगवान महावीर के प्रतीक बताये- महागोप, महासार्थवाह, महा धर्मकर्मी और महा नियामक । फिर उसने प्रतीकों की इस प्रकार व्याख्या की "धर्म - दण्ड से हम जीवों की रक्षा करने वाले होने के कारण महावीर महागोप हैं । वे अनेक जीवों को धर्म-मार्ग में संरक्षण देकर निर्वाण के महामार्ग की ओर उन्मुख करते हैं। अतः महासार्थवाह 52/महावीर के उपासक
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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