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________________ अवश्य करना। ___ इतना कहते ही देव अन्तर्धान हो गया। उसने यह कथन बार-बार दुहराया था । अतः शकडालपुत्र समझ भी नहीं पाया कि देव किसके बारे में कह रहा है । फिर, उसने विचार किया कि देव ने जो जो लक्षण बताये हैं, वे सब लक्षण तो मेरे धर्माचार्य मंखलिपुत्र गोशालक में ही घटित होते हैं । निश्चय ही पोलास पुर में मेरे धर्माचार्य गोशालक का आगमन होगा। यह सोचकर शकडाल पूत्र मन-ही-मन बहुत खुश हआ। वह गोशालक के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा। लेकिन दूसरे ही दिन शकडाल पुत्र की सब आशाओं पर पानी फिर गया, क्योंकि पूरे नगर में यह समाचार फैल गया कि श्रमण भगवान महावीर पोलासपुर पधार रहे हैं। भगवान महावीर पोलासपुर के सहस्राम्रवन में पधारे। हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुष भगवान के समवसरण में जाने लगे। शकडालपुत्र का उत्साह यह सुनकर ठंडा पड़ गया कि गोशालक के स्थान पर महावीर आये हैं, लेकिन उसके मन में विचार आया कि देव ने जिन को सर्वदर्शी, त्रिकालदर्शी और लोकपूज्य बताया था, चलकर देखना चाहिए क्या महावीर वैसे ही त्रिकालदर्शी और लोकपूज्य हैं, जैसा देव ने बताया था। उन्हें देखकर ही उनकी तुलना पूज्य गोशालक से कर सकूँगा। उत्सुकता लिये शकडाल पुत्र सहस्राम्रवन में पहुंच गया। उसने भगवान महावीर की विधिपूर्वक वंदना की और सभा में बैठकर उनकी देशना सनने लगा। देशना के समय वह बड़े असमंजस और ऊहापोह में पड़ गया, क्योंकि जो बातें भगवान महावीर अपने मुखारविंद से फरमा रहे थे, वे गोशालक के सिद्धान्त को काटती थीं। वह बार-बार सोचता था कि मैं किसको सत्य मानूं , गोशालक के कथन को यथार्थ मानूं या महावीर की वाणी को सत्य मानूं? शकडाल पुत्र के मन के भावों को समझकर भगवान महावीर ने उससे कहा -“देवानुप्रिय! तुम बड़ी दुविधा में पड़ गये हो। तुम्हारे मन में गोशालक के आने की कल्पना उभरी थी। तुम उत्सुकता और जिज्ञासा के कारण यहां आये हो । मेरी बातों की तुलना गोशालक की बातों से कर रहे हो और यह निश्चय नहीं कर पा रहे हो कि पुरुषार्थवाद और नियतिवाद में कौन-सा वाद /सिद्धान्त सत्य है।" भगवान द्वारा सब कुछ जान लेने पर शकडाल पुत्र उनकी महिमा से प्रभावित हुए बिना न रह सका। बार-बार नमन करते हुए बोला - "भन्ते, आपने यथार्थ ही कहा है। आप अन्तर्यामी हैं । देव ने जैसा कहा, वैसा ही पाकर, सुनकर सत्यान्वेषी शकडालपुत्र/49
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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