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________________ सत्यान्वेषी शकडालपुत्र पोलासपुर नगर में राजा जितशत्रु का राज्य था। वहां शकडालपुत्र नाम का एक कुम्भकार रहता था। उसकी पत्नी का नाम अग्निमित्रा था। कुम्भकार शकडाल परम्परानुसार मिट्टी के बर्तन बनाने और बेचने का काम करता था। पूर्व जन्म के पुण्य के उदय से वह इसी काम को करते हुए धनी बन गया। उसके पास कई करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की चल-अचल सम्पत्ति हो गई। वह हजारों गायों को भी पालने लगा। इतना बड़ा सेठ और व्यापारी होते हुए भी उसने परंपरा से होते आ रहे बसनों के काम को नहीं छोड़ा। लेकिन अब बर्तन बनाने, पकाने और बेचने का काम उसके नौकर करते थे। बर्तनों के बेचने बनाने की उसकी सैंकड़ों दुकानें पोलासपुर नगर के बाहर भी हो गई थीं। • शकडालपुत्र गोशालक के आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था । नियतिवाद पर उसकी अटूट आस्था थी। इसके बावजूद उसके अन्तर में सत्य को जानने की जिज्ञासा बनी रहती थी। एक बार शकडाल पुत्र अपनी गृहवाटिका में दोपहर के समय धर्म-साधना कर रहा था। उसी समय आकाश से एक आकर्षक देव प्रकट हुआ। उसने शकडाल पुत्र से कहा - "शकडाल ! शीघ्र ही तुम्हारे नगर में त्रिकालज्ञ, सर्वदर्शी और लोकपूज्य पुरुषोत्तम पधारने वाले हैं। वे दानव देव मानव तिर्यंच आदि के द्वारा वन्दनीय हैं। उनके दर्शन करके, उनकी वाणी सुनकर और उनको पीठ, फलक, शय्या आदि देने का निवेदन करके तुम अपने को कृतकृत्य
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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