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________________ में रहते हुए लम्बे समय तक श्रावक व्रतों का पालन करेगा और अन्तिम समय में संथारा -संलेखना व्रत ग्रहण करके मृत्युका वरण करेगा। अन्त में देहत्याग करके इसकी आत्मा सौधर्म कल्पके अरुणाभ विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाला देव बनेगी। कुछ समय पश्चात् भगवान् महावीर अन्यत्र प्रस्थान कर गये। आनन्द घर में रहकर धर्म का पालन करने लगा। यूं उसे चौदह वर्ष बीत गए। पन्द्रहवें वर्ष में उसने पूरी तरह धर्म का पालन करने के लिए अपना स्वामित्वाधिकार अपने ज्येष्ठ पुत्र को दे दिया। अपने समस्त सम्बन्धियों, मित्रों और परिचितों को बुलाकर कहा - "आज से आप सब मेरे स्थान पर मेरे ज्येष्ठ पुत्र को माने। यही इस घर का मुखिया है। आप को सलाह - सम्मति की जरूरत हो तो आप लोग इसी से अब सम्पर्क करना। आज से मैं एकान्त में सभी झंझटों से मुक्त होकर पौषधशाला में धर्म की विशिष्ट साधना/ उपासना करूंगा।" __ सभी से अनुमति लेकर आनंद कोल्लाग-सन्निवेश में स्थित पौषधशाला में रहने लगा। वहां उसने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं धारण की। सूत्र, कल्प, मार्ग और तत्व के अनुसार प्रत्येक प्रतिमा की साधना करने लगा। इस तरह प्रतिमाओं की साधना (विशिष्ट तप) करने से आनन्द की देह कृश हो गई थी। उसकी देह अस्थि मात्र रह गयी । अंत में उसने संथारा-संलेखना व्रत धारण कर लिया । अनशन के इन्हीं दिनों में आनन्द को अविधज्ञान उत्पन्न हुआ। उन्हीं दिनों भगवान् महावीर पुनः वाणिज्य ग्राम में पधारे । महाश्रमण महावीर से अनुमति लेकर गणधर गौतम वाणिज्य ग्राम में भिक्षा के लिए गए। नगर में उन्होंने आनन्द के बारे में सुना तो वे आहार लेने से पहले आनन्द श्रावक के पास पौषधशाला में गये । कृशशरीरी आनन्द ने गौतम को देखा तो हर्षित भाव से उनकी वन्दना की और कृतज्ञ भाव से बोला- 'भन्ते। मेरी एक जिज्ञासा है। उसका समाधान करने की कृपा करें। अनुमति मिलने पर आनन्द ने कहा - 'क्या श्रावक को अवधि ज्ञान की उपलब्धि हो सकती है ? " 'अवश्य हो सकती है।" गणधर गौतम बोले । "भन्ते, मुझे भी अवधि ज्ञान की उपलब्धि हुई है। मैं अब उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम की दिशाओं में पांच सौ योजन तक तथा नीचे नरकवास तथा ऊपर सौधर्म देवलोक तक की स्थितियों को जान/ देख रहा हूं।' गृहपति आनन्द/13
SR No.007103
Book TitleMahavir Ke Upasak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMuni Mayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1993
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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