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________________ निरनुबन्धः सूत्राधात्वक गणः पत्राकः | पदम् | अर्थः ध्ये ४२८परस्मै | [सक.] चिन्ता करना, ध्यान करना । गुप्-जुगुप्स् ४२८/ आत्मने| [सक.] घृणा करना, निन्दा करना । झुर परस्मै | [सक.] चिन्तन करना, याद करना । परस्मै | [सक.] चलना । अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः ४९२ आदेशः सानुबन्धः यि चिन्तायाम् गुपि गोपन-कुत्सनयोः स्मं चिन्तायाम् टिरिटिल्ल भ्रमू चलने टिविडिक्क मडु भूषायाम् ठा छ गतिनिवृत्ती दहं भस्मीकरणे सैच् भये डल्ल पां पाने डिम्भ स्रंसूङ् अवस्त्रंसने वृतूङ् वर्तने ढक्क छदण् संवरणे ढण्डल्ल भ्रमू चलने ढण्ढोल गवेषण मार्गणे ढिक्क गर्ज गर्जने शब्दे) भ्रमू चलने गवेषण मार्गणे भ्रमू चलने भ्रमू चलने णज्जज्ञांश् अवबोधने १. पा० म० - मडुण भूषायाम् (१६३३)। ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܗ परस्मै | [सक.] विभूषित करना । [अक.] रहना, स्थिर होना। परस्मै | [सक.] दग्ध करना । [अक.] डरना। [सक.] पीना। [सक.] नीचे गिरना, नष्ट होना। [अक.] घसना, गिर पडना। [सक.] आच्छादन करना, बन्द करना । परस्मै | [सक.] भ्रमण करना । परस्मै | [सक.] अन्वेषण करना । [अक.] साँड का गरजना । ढंस EEEEEEEEEEEEEEE परस्मै | [सक.] भ्रमण करना । दुण्दुल्ल परस्मै | [सक.] अन्वेषण करना । परस्मै | [सक.] भ्रमण करना । दुस परस्मै | [सक.] भ्रमण करना । परस्मै | [सक.] जानना । ७६७
SR No.007102
Book TitleVyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalkirtivijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages368
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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