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________________ १८ ३ ४ मिउमद्दवसंपन्ने, अणुपुव्वि वायगत्तणं पत्ते । मूलम् ६ ७ ओहसुयसमायारे, नागज्जुणवायए वंदे ॥ ४० ॥ छाया मृदुमार्दवसम्पन्नान, आनुपूर्व्या वाचकवं प्राप्तान् । ओघ श्रुतसमाचारान् नागार्जुनवाचकान् वन्दे ॥ ४० ॥ स्थविरावली - अर्थ:-- मैं अतीव कोमलता गुणसे सम्पन्न, क्रमसे वाचकपद प्राप्त और ओघश्रुत ( उत्सर्ग - विधिमार्ग) के सम्यक प्रकारसे आचरण करनेवाले श्री नागार्जुनाचार्य को वन्दन करता हूं ॥ ४० ॥ मूलम् - . १० २ गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारणिंदाणं । ६ ३ ४ णिचं खंतिदयाणं परूवणे दुर्भिदाणं ॥ ४१ ॥ 9 छाया गोविन्देभ्योऽपि नमः, अनुयोगे विपुलधारणेन्द्रेभ्यः । नित्यं क्षान्तिदयानां प्ररूपणे इन्द्रदुर्लभेभ्यः ॥ ४१ ॥ अर्थः શ્રી નન્દી સૂત્ર अनुयोगकी अधिक धारण रखनेवालों में इन्द्रके समान, क्षमा और दया गुणों की प्ररूपणा इन्द्रों के भी सदा दुर्लभ श्रीगोविन्द नामक आचार्य को भी मेरा नमस्कार हो ॥ ४१ ॥ मूलम् १ ૧ ८ ४ तत्तो य भूयदिनं निच्चं तवसंजमे अनिव्विण्णं । ६ ९ ७ पंडियजणसम्माणं, वंदामो संजमविहिष्णुं ॥ ४२ ॥
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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