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________________ निहर्षिणी टीका अ. ३ आशातनावर्णनम् ६९ मूलम् - सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स परिसं भेत्ता भवइ आसाणा सेहस्स ॥ २८ ॥ ( सू० २१ ) छाया - शैक्षो रात्निकस्य कथां कथयतः परिषदं भेत्ता भवत्याशातना शैक्षस्य ॥ २८ ॥ ( सू० २१ ) टीका - 'सेहे ' - इत्यादि शैक्षो यदि कथां कथपतो रत्निकस्य परिषदं = सभां श्रोतृगणं भेता = विघटयिता छेदं भेदं कर्ता स्यात्तदा शैक्षस्याऽऽशातना भवति ॥ २८ ॥ ( सू० २१ ) मूलम् - सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं अच्छिदित्ता भवइ आसायणा सेहस्स ॥ २९ ॥ ( सू० २२ ) छाया - शैक्षो रात्निकस्य कथां कथयतः कथामाच्छेत्ता भवत्याशातना शैक्षस्य ॥ २९ ॥ ( सू० २२ ) टीका - 'सेहे ' - त्यादि । शैक्षो यदि कथां कथयतो रात्निकस्य कथाम् आच्छेत्ता=भिक्षावेला निर्देशादिना भञ्जयिता भवति तदा शैक्षस्याऽऽशातना भवति ॥ २९ ॥ ( सू० २२ ) मूलम् - सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुट्टियाए अभिन्नाए अबुच्छिन्नाए अव्वोगडाए दोच्चं पि तच्चं पि 6 से ' इत्यादि । गुरु के व्याख्यान से शिष्य यदि प्रसन्न नहीं होता है तो आशातना होती है ॥। २७ ॥ ( सू० २० ) 46 सेहे " इत्यादि । गुरु के व्याख्यानकाल में शिष्य परिषद को छिन्न-भिन्न करे तो शिष्य को आशातना होती है ॥ २८ ॥ (सू०२१) सेहे ' इत्यादि । गुरु के व्याख्यानसमय में " अब भिक्षा का समय हो गया " इत्यादि । बोलकर विक्षेप करे तो आशतना होती है ॥ २९ ॥ ( सू० २२ ) 6 'से हे ' इत्याहि गुरुना व्याभ्यानथी शिष्य ने प्रसन्न न थाय तो माशातना थाय छे (२७) ॥ सू. २० ॥ 'से हे ' इत्याहि गुरुना व्याभ्यानासभां शिष्य परिषहने छिन्न-भिन्न रे ते शिष्यने आशातना थाय छे. (२८) । सू २१ ।। 'से हे' त्याहि गुरुना व्याध्यानसमयमां ' हुवे लिक्षाना समय था गये। ' ઇત્યાદિ મેલીને વિક્ષેપ કરે તે આશાતના થાય છે. (૨૯) સૂ. ૨૨ શ્રી દશાશ્રુત સ્કન્ધ સૂત્ર
SR No.006365
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages511
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size25 MB
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