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________________ २ में आशातीत बिस्तार हुआ य श्रीमान् अमर चन्द का ओ भी अपनो फर्म में सम्मिलित कर लिया और अब फर्म का नाम "ए. सो. बी सेठिया एन्ड कम्पनी रख दिया । वेल्जियम, स्विटजर - लैन्डबर्लिन के रंग के कारखानों की तथा गाँवलाँज gablan आष्ट्रिया के मनिहारी कारखाने की सोल एजेन्सियाँ प्राप्त करली । आपने हावड़ा में 'धी सेठिया कलर एन्ड केमिकल वर्क्स लिमिटेड” नामक रंग का कारखाना खोला जो भारत वर्ष का सर्व प्रथम रंग का कारखाना था रंग विश्लेषण के फार्मुले सीखने केलिए आपने एक जर्मन विशेषज्ञ को दैनिक पाँच मिनट के लिए ३०० रुपये मासिक पर नियुक्त किया था । सं. १९७१ (सन् १९१४) के प्रथम विश्वयुद्ध में रंगों के भाव बढ़ जाने से रंग के कारखानेसे आशातीत लाभ हुआ । होमिय पैथी चिकित्सा पद्धति को आपने सं. १९६५ में अपनाया और उसकी अनुकू लता, सुगमता से प्रभावित हुए । फलस्वरूप आपने प्रख्यात डाक्टर जतीन्द्रनाथ मजमूदार के पास होमियोपैथी का अभ्यास किया और प्रवीणता प्राप्त की । इसका साकार रूप आज " सेठिया जैन होमियोपैथिक औषधालय " जहां वार्षिक ५५००० की संख्या में जनता निःशुल्क चिकित्सा पा रही है । वि.सं. १९६९ (१९१३ ) में बीकानेर में महात्मा गांधी रोड (पूर्व नाम किंग एडवर्ड - मेमोरियल रोड ) पर “बो सेठिया एन्ड सन्स" नाम से दुकान खोली वह आज भी बीकानेर की प्रथम श्रेणी की विश्वस्त जो जनरल एवं फेन्सी सामान के लिए प्रसिद्ध हैं । I सं. १९७० में वीकानेर में स्कूल स्थापित को जहां बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा के साथ साथ धार्मिक शिक्षा भी दी जाती थी । इससे भी पहले आपने शास्त्र भण्डार का काम शुरू करा दिया था । सं. १९७२ (१९१६ ) से पुस्तक प्रकाशन का काम शुरू किया लागत मूल्य और उससे भी कम मूल्य पर साहित्य उपलब्धकर जैन समाज के विकास में आपने महत्वपूर्ण भूमिका अदा को । संस्थाने अब तक अर्थात् सं. २०२८ तक १४० ग्रन्थ प्रकाशित किए हैं जिनमें किसी किसी की १८ आवृत्ति तक छप चुकी है । कतिपय महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नाम इस प्रकार है: -- जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग १ से ८ जैन दर्शन दशवैकालिक सूत्र उत्तराध्ययन सूत्र प्रश्न व्याकरण सूत्र आचारांग सूत्र प्रश्रुत स्कंध अहित प्रवचन नवतत्त्व ( विस्तार सहित ) भगवती सूत्र एवं पन्नवणा सूत्र के थोकड़े. शब्दार्थ, अन्वयार्थ भावार्थ सहित
SR No.006353
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_chandrapragnapti
File Size23 MB
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