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________________ प्रज्ञापनासूत्रे थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया षट्स्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतु:स्थानपतितः स्थित्या चतु:स्थानपतितः कृष्णवर्णपर्यवैस्तुल्य अवशेषैः वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः षट्स्थानपतितः अष्ट स्पशैः षट्स्थानपतितः, एवं यावद् दशगुणकालकः, संख्येयगुणकालकोऽपि एवञ्चैव नवरं स्वस्थाने द्वि स्थानपतितः एवं असंख्येयगुणकालकोऽपि, नवरं स्वस्थाने चतुःस्थानपतितः, एवमनन्तगुणकालकोऽपि, नवरं कारण हे भगवन् ! ऐसा कहा है कि एकगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलगस्स व्वट्टयाए तुल्ले) एक गुण काला पुद्गल एक गुण काले दूसरे पुद्गल से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य है (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित हैं (ओगाहणट्टयाए चउठाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित हैं (ठिईए चउट्टाणवठिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है (कालवण्ण पज्जवेहिं तुल्ले) कृष्ण वर्ण के पर्यायों से तुल्य है (अवसेसेहिं वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) शेष वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायो. से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित है (अट्ठफासेहिं छट्ठाणवडिए) आठ स्पर्शो से षट्स्थानपतित है (एवं जाव दसगुणकालए) इसी प्रकार यावत दश गुण काला (संखेज्जगुणकालए वि एवं चेव) संख्यातगुण काला भी इसी प्रकार (नवरं) विशेष (सट्ठाणे दुट्ठाणवडिए) स्वस्थान में द्विस्थानपतित (एवं असंखेज्जगुणकालए वि) इसी प्रकार असंख्यातगुणकाला भी (नवरं सट्टाणे छे मे गुण ४५इहाना मन-1 पर्याय ह्या छ ? (गोयमा ! एग गुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलास दबट्टयाए तुल्ले) २ गुण ४ा युगस से शुर भी गलथी द्रव्यनीष्टिये तुल्य छ (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रवेशानी अपेक्षा पट्थान पतित छे (अवगाहणट्ठयाए चउटुणवडिए) म नाथी चतु:स्थान पतित छे (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित छ (कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले) र १ ना पर्यायी तुझ्य छ (अवसेसेहिं वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) शेष १, ५ २स, २५श ना पायोथी (छट्ठाणवडिए) पट्थान पतित छे (अट्ठफासेहिं छढाणवडिए) मा २५ थी षट्स्थान पतित छ (एवं जाव दसगुणकालए) प्रारे यावत् ४० गुण (संखेज्जगुणकालए वि एवं चेव) सभ्यात शुशु ४ ५ से १४ घारे (नवर) विशेष (सट्ठाणे दुट्ठाण वडिए) २१२थानमा विस्थान पतित (एवं असंखेज्ज गुणकालए वि) से प्रारे मसभ्यात शुY ४ ५ (नवरं सदाणे चउढाणवडिए) विशेष मे छ है २१२थानमा यतु:स्थान पतित छ (एवं अणंतगुणकालए શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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