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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.१३ परमाणु पुद्गलपर्यायनिरूपणम् ७९५ स्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः स्थित्या तुल्यः, वर्णादिभिरष्टस्परौंः षट्स्थानपतितः एवं यावद्-दशसमयस्थितिकः, संख्येयसमयस्थितिकानामेवश्चैव, नवरम्-स्थित्या द्विस्थानपतितः, असंख्येयसमयस्थितिकानामेवश्चैव, नवरं स्थित्या चतुःस्थानपतितः, एकगुणकालनानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-एकगुणकालकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! एकगुणकालकः पुद्गलः एकगुणकालकस्य पुद्गलस्य द्रव्यास्थितिवाला पुद्गल दूसरे एक समय की स्थिति वाले पुद्गल से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य है (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा से षटूस्थानपतित है (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणडिए) अवगाहना से चतु:स्थानपतित है (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य है (वण्णाइअट्ठफासेहि छट्ठाणवडिए) वर्णादि से तथा अष्ट स्पर्शों से षट्स्थानपतित है (एवं जाव दससमयठिइए) इसी प्रकार यावत् दस समय की स्थिति वाला (संखेज्जसमयठिइयाणं एवं चेव) संख्यात समय की स्थिति वालों की वक्तव्यता इसी प्रकार की (णवरं) विशेष (ठिईए दुट्टाणवडिए) स्थिति से द्विस्थानपतित (असंखेजसमयठिइयाणं एवं चेव) असंख्यात समय की स्थिति वालों की प्ररूपणा ऐसी ही (नवरं) विशेष (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (एगगुणकालगाणं पुच्छा ?) एकगुणकाले की पृच्छा ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-एगगुणकालगाणं अर्णता पजवा पण्णत्ता ?) किस द्रव्यती ष्टिये तुल्य छ (पएसठ्ठयाए छट्ठाणवडिए) प्रशानी अपेक्षा मे षटथान पतित छ (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) Aqानाथी यतु:स्थान पतित छ (ठिइए तुल्ले) स्थितिथी तुक्ष्य छ (वण्णाइ अट्रफासेहिं छद्राणवडिए) पहिथी मने अष्ट २५शीथी षस्थान पतित छ (एवं जाव दस समयठिइए) से प्रारे यावत् ४॥ सभयनी स्थितिवा (संखेज्ज समय ठिइयाणं एवं चेव) सध्यात सभयनी स्थितिवाणानी १४तव्यत२प्रा२नी (णवर) विशेष (ठिइए दुदाण वडिए) स्थितिथी द्विस्थान पतित (असंखेज्जसमय ठिइयाण एवं चेव) असण्यात समयनी स्थितिमानी ५३५९। मेवी छ (नवर) विशेष (ठिईएचउट्ठाण वडिए) स्थितिथी यतु:स्थान पतित (एगगुणकालगाणं पुच्छा ?) २४ गुए जानी ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणठेण एवं वुच्चइ एगगुणकालगाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) सन् ! ॥ ५२ मे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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