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________________ ६९२ जीवाभिगमसूत्रे प्रज्ञप्तः, एवमनेकविधद्रुमोपेतवनस्य पद्मवरवेदिकाया वनषण्डस्य च वर्णन मेकोरुकद्वीपवदेव विज्ञेयमिति ६९ "एवं गोकण्णमणुस्सा णं पुच्छा' हे भदन्त ! दाक्षिणात्यानां गोकर्णमनुष्याणां गोकर्णनामको द्वीपः प्रज्ञप्त इति प्रश्नः, भगवानाह 'गोयमा' हे गौतम ! 'वेसाणियदीवस्स' वैषाणिक (वैशालिक) द्वीपस्य 'दाहिणपच्चस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ' दक्षिणपाश्चात्यात् चरमान्तात् चत्वारि योजनशतानि 'सेसं जहा हयकण्णाणं' शेषं सर्व प्रकरणं यथा हयकर्ण मनुष्याणां तथैवात्र विज्ञेयम् तथाहि लवण समुद्रमवगाह्यात्रान्तरे क्षुल्लहिमवद् दष्ट्राया उपरि जम्बूद्वीपवेदिकान्ताव चतुर्योजनशतान्तरे गोकर्णमनुष्याणां गोकर्णद्वीपो नाम द्वीप प्रज्ञप्तः, स च चत्वारि योजनशतानि आयामविष्कम्भेण द्वादशपञ्चषष्ठानि योजनशतानि किश्चिद्विशेषाबारह सौ पैंसठ योजन की इसकी परिधि है यहां पर भी एकोरुक द्वीप की तरह पद्मवर वेदिका है और वनखण्ड है इन का वर्णन सब एकोरुक द्वीप के जैसा ही है। ___ एवं गोकपणमणुस्साणं पुच्छा' 'हे भदन्त' दक्षिण दिशा के गोकर्ण मनुष्यों का गोकर्ण नामका द्वीप कहा पर है। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं । 'गोयमा' वेमाणियदीवस्स दाहिणपच्चथिमिल्ला ओ चरिमंताओ लवणसमुदं चत्तारि जोयणसयाइं सेसं जहा हय कण्णाणं' हे गौतम वैषाणिक द्वीप के दक्षिण पाश्चात्य चरमान्त से चार सौ योजन लवण समुद्र में घुस जाने पर आगत क्षुद्र हिमवान पर्वत की दाढा पर जम्बूद्वीप की वेदिका के अन्त से चार सौ योजन के अन्तर में गोकर्ण मनुष्यों का यह गोकर्ण नामका द्वीप कहा गया है । यह द्वीप भी चार सौ योजन का लम्बा चौड़ा है और कुछ अधिक बारह તેની પરિધિ છે અહિયાં પણ એકરૂક દ્વીપની જેમ પદ્વવર વેદિકા છે. અને વનખંડ છે. તેનું તમામ વર્ણન એકરૂક દ્વીપના વર્ણન પ્રમાણે જ છે. ____'एव गोकण्णमणुस्साणं पुच्छा' हे मापन! ६क्षिण दिशाना મનુષ્યને કર્ણ દ્વીપ કયાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ स्वाभीने ४ छ त 'गोयमा ! वेसाणियदीवस्स दाहिणपच्चस्थिमिल्लाओ चरि. मंताओ लवणसमुद्द चत्तारि जोयणसयाइसेस' जहा हयकग्णाणं' के गीतम! વૈષાણિક દ્વીપના દક્ષિણ પશ્ચિમના ચરમાન્તથી ચાર જન લવણ સમુદ્રમાં જવાથી ત્યાં આવેલ ક્ષુદ્રહિમવાનું પર્વતની દાઢા પર જ ખૂદ્વીપની વેદિકાના અન્તથી ચારસો યજનના અંતરમાં ગેકર્ણ મનુષ્યને આ ગોકર્ણ નામનો દ્વીપ કહેલ છે. આ દ્વીપ પણ ચાર એજનની લમ્બાઈ પહેઠળાઈ વાળે છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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