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________________ ५९८ जीवाभिगमसूत्रे विशिष्टचरणाः, अत्यन्तं विसर्पन्तो चलन्तावपि मृदूनां मध्ये सुकुमारौ - मनोज्ञौ - कूर्मवत् कूर्मपृष्टवत् संस्थितौ उन्नतत्वेन कच्छपपृष्ठ संस्थानसंस्थितौ विशिष्ट चरणौ यासां तांस्तथा, 'उज्जुमिउय पीवर निरंतर इसाहियगुलीया' ऋजुमृदुकपीवर निरन्तर पुष्ट संहता अंगुलयः, ऋज्व्यः सरला न तु वक्राः मृदुकाः कोमलाः पीवराः - उपचिताः निरन्तराः - परस्परान्तररहिताः पुष्टाः - मांसलाः संहताश्च सुश्लिष्टा अंगुल्य: - पादाङ्गुलयो यासां तास्तथा, 'उण्णयरतियतलिण तंबसुइणिद्ध नखा' उन्नतरतिद तलिन ताम्रशुचिस्निग्धनत्वाः' तत्र उन्नताः - अभ्युन्नताः रतिदाः, तलिना:- प्रतलाः, ताम्रा ईषद्रक्ताः शुचयः - पवित्राः स्निग्धाश्च नखा यासां तास्तथा, 'रोमरहिय वट्टलट्ठसंठिय अजहरण पसत्थ लक्खण अकोप्प जंघजुयला' रोमरहित वृत्तलष्टसंस्थिताजघन्य प्रशस्तलक्षणा कोप्यजंघ युगलाः रोमरहितं वृत्तं वर्तुलं लष्टं संस्थितम्, तथा अजघन्यानि - उत्कृष्टानि लक्षणानि यत्र तत् तथा, एतादृशकोप्पम द्वेष्यं प्रीतिकरमित्यर्थः जङ्घा युगलं यासां तास्तथा, 'सुणिम्मिय गुढ जाणुमंडलसुबद्धसंधी' सुनिर्मित सुगूढ जानुमण्डल सुबद्ध चलते समय बहुत सुन्दर रीति से चलते हैं पद्म के जैसे ये सुकुमार होते हैं । इनका संस्थान कूर्म कच्छप की पीठ के जैसा उन्नत होता है । इनके चरणों की अंगुलियां ऋजु-सीधी छिद्र रहित पीवर - पुष्ट रहती हैं और संहत आसपास में एक दूसरी अंगुलि से सटी हुई रहती है । 'उष्णरतिय तलितंच सुइणिद्वणखा' इनके नख उन्नत होते हैं रति प्रद होते हैं, तलिन - पतले होते हैं ताम्र-ईषद्रक्त होते हैं शुचि - पवित्र साफ होते हैं और स्निग्ध होते हैं । 'रोम रहिय वट्ट लट्ठ संठिय अजहृण्ण पसत्थलक्खण अकोप्प अंधजुयला' इनका जंघा युगल रोम रहित गोल, सुन्दर होता है और उत्कृष्ट लक्षणों वाला होता है तथा अद्वेष्य વાળી, પતિના વિચારને અનુસરનારી વિગેરે ગુણેાવાળી હોય છે. તેમના બેઉ. પગ ચાલતી વખતે ઘણાજ સુંદર રીતે ચાલે છે પદ્મના જેવા તે સુકુમાર હાય છે. તેનું સંસ્થાન કાચબાના વાંસાની જેમ ઉન્નત હોય છે. તેમના પગાની આંગળીયા ઋજી સીધી છિદ્રવિનાની પીવર પુષ્ટ હોય છે. અને પરસ્પર संहत उडतां मेड मील यांगजीयाने भजीने रहे छे. 'उन्नयरतिय तलिण तंबसुइणिद्धणखा' तेभोना नया उन्नत होय छे. यानंद अह होय छे. તલિન કહેતાં પાતળા હોય છે. તામ્ર ઇષદ્રત હોય છે. શુચિ પવિત્રહાય છે. अने स्निग्ध होय छे. 'रोमरहिय वट्टलट्ठसंठिय अजहरण पसत्थलक्खण अकोप्प जंघजुयला' तेभनी अंधा युगस रोभविनानुं गोण सुंदर होय छे भने उत्कृष्ट लक्षण वा होय छे. तथा मद्वेष्य सुंदर बागे तेवु होय छे. 'सुणिम्मिय જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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