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________________ ४१६ जीवाभिगमसूत्रे अथ के ते जरायुजाः, जरायुनानां कियन्तो भेदा इति प्रश्यः, भगवानाह'गोयमा' हे गौतम ! 'जराउया तिविहा पन्नत्ता' जरायुजास्त्रिविधा:-त्रिप्रकारकाः प्रज्ञप्ता:-कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा-'इत्थीपुरिसा णपुंसगा' स्त्रियः पुरुषा नपु. सकाश्च । 'तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा एव' तत्र खलु ये ते संम् च्छिमास्ते सर्वेऽपि नपुंसका एव भवन्ति नतु स्त्रियः पुरुषावेति नियमत स्तेषां नपुंसकवेदोदयादिति । 'तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ' तेषां खलु मदन्त । चतुष्पदस्थलचरजीवानां कतिलेश्याः-कियत्संख्यकाः लेश्याः प्रज्ञप्ता:कथिता इति प्रश्नः उतरयति-'सेसं जहा पक्खीण' शेष यथा पक्षिणाम्किया गया है। पोतज भेद इसके अन्तर्गत हो ही जाता है इसलिये यहां उसकी विवक्षा नहीं की है। इसीलिये यहां से किं तं जराउया' जरायुजों के कितने प्रकार हैं ऐसा प्रश्न गौतम ने किया है ! उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जराउया तिविहा पन्नत्ता' जरायुज तीन प्रकार के कहे गये हैं तं जहा' जैसे-'इत्थी, पुरिसा, णपुंसगा' स्त्री, पुरुष और नपुंसक जरायुज या तो स्त्री वेद वाले होते हैं या पुरुष वेद वाले होते हैं या नपुंसक वेदवाले होते है- इसतरह से जरायुज जीव तीन प्रकार के कहे गये है। 'तत्थ णं जे ते समुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा एव' उनमें जो संमूच्छिम जीव होते है वे नियम से नपुंसक ही होते स्त्रीवेद वाले या पुरुषवेद वाले नहीं होते है । 'तेसि णं भंते ! जीवाणं कह लेस्साओ पन्नत्ताओ' हे भदन्त ! उन चतुष्पद स्थलचर जीवों के कितनी लेश्याएं होती हैं ? उत्तर में प्रभु कहते है -'सेसं जहा पक्खी છે. પિતજ રૂપી ભેદ તેની અંતર્ગત થઈ જાય છે. તેથી તેની વિવક્ષા અહીં अरेस नथी. तथा महियां से किं त जरायुउया' युन्नाटा १२४९या છે? આ પ્રમાણેને પ્રશ્ન શ્રીગૌતમસ્વામીએ પૂછેલ છે આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री छ ? 'जराउया तिविहा पण्णत्ता' हे गौतम ४२रायु ३ मारना होय छे. 'त' जहा' म 'इत्थी, पुरिसा, णपुसगा' स्त्री, ३५ भने नस જરાયુજ કાંતે સ્ત્રીવેદ વાળા હોય છે, અથવા પુરૂષદવાળા હોય છે, અથવા નપુંસક વેદવાળા હોય છે, આ રીતે જરાયુજ જીવે ત્રણ પ્રકારના કહેવામાં माच्या छे. 'तत्थ णं जे ते समुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा एव' तमा २॥ સંમઈિમ હોય છે, તેઓ નિયમથી નપુંસકજ હોય છે. સ્ત્રી ઉદવાળા अथवा ३५वहाणा होता नथी 'तेसिणं भते जीवाणं कई लेसाओ पण्णत्ताओं' હે ભગવન્! તે ચતુષપદ સ્થલચર જીવોને કેટલી લેશ્યાઓ હોય છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमत्वामीन है छ : 'सेस जहा पक्खीण' हे જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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